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बुद्धिवाले और स्वयं को प्रभु का खरा भक्त मानने वाले गोशाला के साथ कूर्मग्राम में पधारे।
(गा. 67 से 75) इधर चंपा और राजगृही नगरी के मध्य में धन से परिपूर्ण और महीमंडल में मंडपरूप गौबर नाम का एक गाँव था। वहाँ गोशंखी नामक एक अहीर कुटुम्बी रहता था। उसके बंधुमती नामक एक वंध्या स्त्री थी कि जो उसे अति वल्लभ थी। उस गांव के नजदीक खेटक नाम का एक गांव था। गाँव को चोर लोगों ने लूट कर नाश कर दिया एवं अनेक लोगों को बंदी बनाकर पकड़ लिया। उस समय वेशिका नाम की किसी स्त्री ने पुत्र को जन्म दिया। उसका पति मारा जाने से स्वरूपवती जानकर चोर लोगों ने उसे साथ में ले लिया। प्रसव रोग से पीड़ित वह स्त्री वृषभ जैसे दुर्दान्त और वेग से चलते चोर लोगों के साथ हाथ में बालक को लेकर चल न सकी। तब चोर बोले कि 'अरे स्त्री! यदि तू जीना चाहती है तो मूर्तिमान् व्याधि जैसे इस बालक को छोड़ दे।' तब वह वेशिका बालक को एक वृक्ष के नीचे रखकर भयभीत होकर उन चोर लोगों के साथ चल दी।" सर्व लोगों को प्राण से विशेष अन्य कुछ भी प्रिय नहीं हैं।" प्रातःकाल में वह गोशंखी वहाँ आया और उसने उस बालक को देखा। उसे स्वरूपवान देखकर उसे ग्रहण किया और घर आकर अपनी पत्नि को पुत्र रूप रखने को सौंप दिया। “अपुत्रियों को अन्यों के पुत्र भी अति प्यारे लगते हैं।" पश्चात् उस बुद्धिमान अहीर ने एक भेड़ को मारकर उसके रुधिर से बालक को लिप्त करके और अपनी पत्नि को सूतिका के वेश पहनाकर लोगों में ऐसी बात फैला दी कि “मेरी स्त्री को गूढगर्भ था, तो आज पुत्र का प्रसव हुआ है।' ऐसा कहकर लोगों में महोत्सव किया। इधर उस बालक की माता वेशिका को जो चोर लोग ले गये थे, उसे चंपापुरी के चौटे में बेचने के लिए खड़ी कर दी। उसे अपने धंधे में योग्य समझकर किसी वेश्या ने उसे खरीद लिया। फिर उस वेश्या ने उसे गणिका का सर्व व्यवहर सिखाया। उस वेशिका का पुत्र गोशंखी अहीर के घर युवावस्था को प्राप्त हुआ।
(गा. 76 से 88) एक बार वह मित्रों के साथ घी का गाड़ा बेचने के लिए चंपापुरी नगरी में आया। वहाँ नगरजनों को रमणियों के साथ विलास करते देख वह भी विलास
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)