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उपाय करने लगे। वे सभी गृहदेवियों की भी स्नान पूजा करने लगे तथापि महामारी की शांति किंचित् मात्र भी नहीं हुई। तब इस गांव के लोग यह गांव छोड़ कर अन्य गांवों में चले गये। परंतु यमराज का युवराज जैसा वह क्रोधी व्यंतर उनको वहाँ भी मारने लगा। तब सर्व गाँव के लोगों ने विचारणा की कि ‘अपन ने किसी देव, दैत्य, यक्ष या क्षेत्रपाल को कुपित किया है। इसलिए वापिस उसी गांव में जावें और उसे प्रसन्न करने का उपाय करें। तब वे इस प्रकार की विचारधारा के अनुसार एकत्रित होकर वापिस यहाँ आगए। यहाँ आकर उन्होंने स्नानादि करके श्वेत वस्त्र धारण करके, उत्तरासंग धरकर केशों को खुला करके चत्वर व त्रिकों (चौराहें-तिराहे) आदि में, उद्यान की भूमि में, तथा भूतगृहों में, इसी प्रकार अन्य सर्व स्थानकों में बलि उड़ाते, दीन वदन से मुख ऊंचा करके अंजलीबद्ध होकर इस प्रकार कहने लगे कि-“हे देवताओं, असुरों, यक्षों, राक्षसों और किन्नरों! हमने प्रमाद से जो कोई आपका अपराध किया हो तो उसे क्षमा करो। महान पुरुषों को कोप यदि बड़ा हो तो भी वह प्रणाम तक ही सीमित रहता है। इसलिए यदि किसी की हमसे विराधना हुई हो तो प्रसन्न होवे।" इस प्रकार गांव के लोगों की दीन वाणी को सुनकर वह व्यंतर आकाश में स्थित होकर बोला- 'अरे! लुब्धक के जैसे दुराशय वाले लोगों! तुम सब अब मुझे खमाने आए हो? परंतु उस समय क्षुधा-तृषा से पीड़ित ऐसे वृषभ के लिए उस वणिक् ने घास चारे के लिए धन भी दिया था, तो उससे तुम लोगों ने घास या पानी कुछ भी दिया नहीं था। वह वृषभ मरकर मैं शूलपाणि नामक यक्ष हुआ हूँ। उस वैर से मैं तुम सबको मार डालूंगा। वह बात याद करो।' ऐसे वचन सुनकर पुनः धूपादिक करके पृथ्वी पर लोटकर दीन होकर इस प्रकार बोलने लगे- “हे देव! हमने तुम्हारा अपराध अवश्य किया है, तथापि अब हमें क्षमा करो। अन्य किसी की शरण के बिना अब हम तुम्हारी ही शरण में आए हैं। उनके इस प्रकार के वचन सुनकर वह व्यंतर कुछ शांत होकर बोला ये जो मनुष्य की अस्थियाँ पड़ी हैं, इन सबको संचित करके, इसके ऊपर मेरा एक देवालय बनाओ। उसमें वृषभरूप की मेरी मूर्ति स्थापित कराओ। ऐसा करने पर ही मैं तुमको जीवन दूंगा, अन्यथा नहीं। तब सभी गांव के लोगों के मिलकर वैसा ही किया। इंद्रशर्मा नामक एक ब्रह्मण को वेतन देकर उस शूलपाणि का पुजारी बनाया। यहाँ हड्डियों का संचय है, इससे इस गांव का नाम वर्द्धमान होने पर भी तब से लोक में अस्थिक नाम से प्रख्यात् हुआ। जो
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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