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________________ मात्र से हमको तृप्ति नहीं होती। इसलिए तुमको हम वधू सहित देखकर तृप्ति पाएँ-ऐसा करने के लिए सम्मुख आई यशोदा नामकी राजपुत्री के साथ विवाह करो। तुम्हारे पिता भी तुम्हारा विवाहोत्सव देखने को उत्कंठित है। इसलिए हम दोनों के आग्रह से यह दुष्कर कार्य करो।" इस प्रकार माता के वचन सुनकर प्रभु का चिंतन चल पड़ा कि “आज यह मुझ पर क्या आ पड़ा? एक तरफ माता का आग्रह है और दूसरी ओर संसार परिभ्रमण का भय है। माता को दुःख होता है ऐसी शंका से मैं गर्भ में भी अंग संकुचन करके रहा था। तो अब उनकी मनोवृत्ति दुखित न हो इस प्रकार गृहवास में ही मुझे रहना चाहिये। और फिर मेरे भोगावाली कर्म भी अभी शेष हैं और माता-पिता भी यही चाहते हैं।' इस प्रकार चिंतन करके प्रभु ने माता के शासन को मान्य किया। (गा. 123 से 149) पश्चात् त्रिशला देवी सिद्धार्थ राजा के पास आये और विवाह के संबंध में पुत्र द्वारा दी गई सम्मति ज्ञात कराई। पवित्र दिन में सिद्धार्थ राजा ने महावीर कुमार और यशोदा का विवाहोत्सव जन्मोत्सव के समान किया। त्रिशला रानी और सिद्धार्थ राजा वरवधू को देखकर अपनी आत्मा को धन्य मानते, मानो अमृत रस का पान किया हो वैसे हर्षित हुए। माता पिता के नेत्र को चंद्ररूप प्रभु यशोदादेवी के साथ विषयसुख को अनासक्ति से भोगने लगे। समय व्यतीत होने पर प्रभु से त्रिशला देवी को नाम और रूप से प्रियदर्शना नामकी दुहिता हुई। महाकुलवान और समृद्धिवान जमालि नामक राजपुत्र इस यौवनवती प्रियदर्शना के साथ परणा। (गा. 150 से 155) प्रभु के जन्म से अट्ठावीस वर्ष व्यतीत हुए तब उनके माता पिता अनशन से मृत्यु को प्राप्त करके अच्युत देवलोक में देव हुए। सिद्धार्थ राजा और त्रिशला देवी का जीव अच्युत देवलोक में से च्यव कर अपरविदेह क्षेत्र में मनुष्यभव प्राप्त करके अव्यय पद का वरण करेंगे। माता-पिता के अंगसंस्कार करने के बाद कुछ दिन बीत जाने पर शोकमय हुए अंतःपुर सहित नंदीवर्धन को प्रभु बोले-'हे बंधु! जीव के मृत्यु तो हमेशा पास ही रही है, और यह जीवन नाशवंत है, इसलिए मृत्यु प्राप्त हो जाने के पश्चात् शोक करना यह उसका प्रतिकार नहीं है। इसलिए हे भाई! इस समय तो धैर्य का अवलंबन करके धर्म त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व) 29
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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