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प्रकाशकीय
कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य रचित ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रन्थ त्रिषष्टिशलाकापुरुष - चरित का 'दशम पर्व' (हिन्दी भाग-८); जिसमें तीर्थंकर भगवान महावीर, उनके पूर्व भवों में नयसार, मरीची, त्रिपृष्ठ का चरित्र जो पहले बलदेव व वासुदेव हैं का वर्णन किया गया है; प्राकृत भारती अकादमी की पुष्प संख्या ३४३ के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
त्रिषष्टि अर्थात् तिरेसठ शलाका पुरुष अर्थात् सर्वोत्कृष्ट महापुरुष। सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका- - पुरुष कहलाते हैं । इस कालचक्र के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के आरकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च ६३ पुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी। इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी में ६३ महापुरुष हुए हैं, उनमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ६ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेवों की गणना की जाती है । इन्हीं ६३ महापुरुषों के जीवन-चरितों का संकलन इस 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' के अन्तर्गत किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसे संस्कृत भाषा में १० पर्वों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त ६३ महापुरुषों के जीवनचरित संगृहीत हैं । प्रस्तुत पुस्तक में तीर्थंकर भगवान महावीर जिनसे जैन धर्म की पहचान व इतिहास में स्थान प्राप्त है ऐसे तीर्थंकर का चरित्र-चित्रण किया गया है।