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नदी के मूल के पास में रहकर वह मुनि तप करता है । इतने में आकाश पर बादल रूप चंदरवा बांधती हुई वर्षाऋतु आई। उसमें अधिक जल आने से रसोद्रे अर्थात् विषयरस की वृद्धि द्वारा कुलटा स्त्रियों की तरह नदियों के दोनों (तट) कूल (किनारों) लुप्त होने लगे । और उन्मार्गगामी होने लगी । जिस नदी के तट पर वे मुनि रहे हुए हैं, वहाँ जल का पूर आ जाने से श्री अर्हंत के शासन की भक्त किसी देवी ने सोचा कि, 'यदि मैं इस समय उपेक्षा करूँगी तो यह जल का प्रवाह तट पर रहे मुनि को तट वृक्ष की तरह घसीट कर ले जाएगा।' इस प्रकार सोच कर उस देवी ने उस गिरि नदी के प्रवाह का अन्य दिशा में प्रवर्तन कर दिया । " तपस्वियों को सर्वत्र कुशलता ही होती है ।" तब से ही उस मुनि का नाम 'कुलवालुक' ऐसा नाम पड़ गया। अभी हाल में वे महातपस्वी मुनि यहाँ नजदीक के प्रदेश में ही रहे हुए
हैं ।"
(गा. 329 से 348)
इस प्रकार कुलवालुक मुनि संबंधित समाचार मिलने पर उसका कपटरूपी वृक्ष सफल हुआ। वह वेश्या सद्य कतार्थ हुई हो वैसे नेत्र विकसित करके आचार्य श्री के पास से उठी, एवं वहाँ से प्रयाण करके तीर्थयात्रा के मिष से मार्ग में चैत्यवंदना करती हुई जिस प्रदेश में वे कुलवालुक मुनि थे, वहाँ पहुँची । उनको वंदना करके वह मायावी श्राविका बोली- हे मुनिश्री ! यदि आप मेरे साथ पधारें तो मैं उज्जयन्तादि तीर्थों की वंदना करूँ ।' मुनि ने कार्योत्सर्ग छोड़कर धर्मलाभ आशीष दी एवं पूछा कि 'भद्रे ! तीर्थवंदना करती हुई तुम कहाँ से आ रही हो ?' वह बोली “महर्षि ! मैंने चंपानगरी से तीर्थ वंदना के लिए प्रस्थान किया है। एवं मैंने सर्व तीर्थों से उत्कृष्ट तीर्थरूप तुमको मैंने वंदना की है । अब भिक्षादोष से रहित ऐसा मेरा पाथेय ग्रहण करके पारणा करके मुझ पर अनुग्रह करो ।” उसकी भक्ति भावना देखकर उन मुनि का हृदय आर्द्र हो गया । इसलिए शीघ्र ही उसके साथ भिक्षा लेने के लिए गये । हर्षित होती हुई उस मायावी रमणी ने पूर्वयोजित मोदक उन मुनि को बहराये। उन मोदकों का प्राशन करते ही मुनि को अतिसार (दस्त ) हो गया । " द्रव्य का रसवीर्य विपाक कभी भी अन्यथा होता नहीं है ।" उस अतिसार विपाक कभी भी अन्यथा होता नहीं है ।" उस अतिसार से मुनि ऐसे ग्लान हो गए कि 'जिसके कारण बल क्षीण हो जाने से वे अपने अंगों को भी ठीक से ढंक नहीं सकते थे। उस समय वह कपट मागधिका योग्य समय को जानकर बोली कि, महाराज! मुझ पर अनुग्रह करके आपने
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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