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इच्छा से गर्भपात करने के अनेक प्रयत्न किये, तथापि तेरा उन औषधियों से नाश नहीं हुआ, बल्कि पुष्ट हो गया था। ‘बलवान पुरुषों को सर्व वस्तु पथ्य हुई। तेरे पिताने 'मैं पुत्र का मुख कब निहालू ? ऐसी आशा से मेरे दुष्ट दोहले को भी पूर्ण किया था। पश्चात् जब तेरा जन्म हुआ तब तुझे पिता का बैरी समझकर मैंने तेरा त्याग कर दिया था। परंतु तेरे पिता अपना जीवितव्य की भांति तुझे वापिस ले आए थे। जब तेरा त्याग कर दिया तब उस समय मुर्गी के पंख से तेरी अंगुली बिंध गई थी। वह पक गई तब उसके अंदर जीव पड़ने से तुझे अत्यन्त पीड़ा होती थी। उस समय तेरी अंगुली को पिता मुख में रखते, उस समय तुझे उससे सुख होता था। अरे दुष्ट चारित्रवाले! इस भांति ही पिता ने तेरा महाकष्ट भोगकर भी लालन पालन किया था। उसके बदले में तूने अभी ऐसे उपकारी पिता को कारागृह में डाल दिया है।” कुणिक बोला- “माता! मेरे पिता ने मुझे गुड़ के मोदक भेजे थे और हल्ल विहल्ल को खांड के भेजे, उसका क्या कारण था? चिल्लणा बोली – “हे मूढ! तू तेरे पिता का द्वेषी है, ऐसा जानकर मुझे अनिष्ट हो गया था, इसलिए गुड़ के मोदक तो मैंने भेजे थे" इस प्रकार खुलासा होने पर कुणिक बोला कि – अविचारित कार्य करने वाले मुझे धिक्कार हो।" परंतु अब मैं जैसे थापण रखी वस्तु वापिस लौटा देते हैं, वैसे ही मैं भी अपने पिता को राज्य पुनः लौटा दूंगा।' ऐसा कहकर अर्द्ध भोजन किया हुआ उसी स्थिति में पूरा भोजन करने के लिए भी न रुककर आचमन लेकर धात्री को पत्र सौंपकर पिता के पास जाने की उत्सुकता से उठ खड़ा हुआ एवं वहाँ जाकर 'मेरे हाथों से ही पिता श्री के चरण की बेड़ी तोड़ डालूं' ऐसा विचार कर एक लोहदंड उठाकर वह श्रेणिक के पास जाने के लिए दौड़ा।
(गा. 144 से 162) कुणिक ने श्रेणिक के पास रखे पहरेदार पूर्व के परिचय से कुणिक के पास आए थे, उस समय कुणिक को जल्दी जल्दी आता देखकर आकुल व्याकुल होकर इस प्रकार बोले- “अरे राजेन्द्र! साक्षात् यमराज का लोहदंड धारण करके तुम्हारा पुत्र जल्दी-जल्दी इधर आ रहा है। वह न जाने क्या करेगा? यह हम तो कुछ नहीं जानते हैं? यह सुनकर श्रेणिक ने विचार किया कि “आज तो अवश्य यह मेरे प्राण ही ले लेगा, क्योंकि आज तक तो वह हाथ में चाबुक लेकर आता था,
और आज तो लोहदंड लेकर आ रहा है। और फिर मैं जान भी नहीं सकता कि वह मुझे कैसी कुत्सित मार से मार डालेगा! इसलिए वह आवे नहीं तब तक मुझे
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)