________________
वशीभूत हो जाए उसमें बुद्धि कहाँ से हो?' उदायन पर भक्तिमन्त देवता उस विष का हरण कर देंगे एवं उनसे कहेंगे कि 'यहाँ आपको विषमिश्रित दही दिया जा रहा है, आप अब दही की स्पृहा न करें।' तब मुनि जो रोग था, उसमें वृद्धि होने लगेगी।' रोग भी भूत के तुल्य कुछ भी निमित्त पाकर वृद्धि करने लगता है। रोग वृद्धि हाने पर उसको निग्रह के लिए मुनि पुनः दधि ग्रहण करेगे। परंतु देवता तीन बार उसमें से विष अपहार कर देगे। एक बार वह देव प्रमाद के कारण विष हरण नहीं कर सकेगा। मुनि विष मिश्रित दही ग्रहण कर लेंगे। जब चैतन्य को चुराने वाले विष द्वारा मुनि अपने अवसान का समय जानेगे तब तत्काल ही अनशन ग्रहण कर लेगे। एक महिने पर्यन्त समाधि पूर्वक अनशन पालन करके केवलज्ञान प्राप्त करके मृत्यु के पश्चात् वह देव वहाँ आएगा। वह अवधिज्ञान से सारा वृत्तान्त जानकर काल रात्रि के समान कोपायमान हो जाएगा। और उस कोपावस्था में वह वीतभय नगर को रज के द्वारा ढक देगा। उसके पश्चात् भी वह निरंतर धूलि की वृष्टि करता रहेगा। हे महाभाग अभय! उस समय कपिल मुनि द्वारा प्रतिष्टित वह प्रतिमा भी निधि के समान पृथ्वी में दब जाएगी। उदायन महामुनि का शय्यातर कुभार जो कि निरपराधी था, उसे वह धूलि की वृष्टि करने वाला देव वहाँ से उसका हरण करके सिनपल्ली में लाकर उसके नाम से 'कुंभकारकृत' नामका एक स्थान बसा कर वहाँ रखेगा।
(गा. 1 से 24) यह हकीकत सुनकर अभयकुमार ने प्रभु को नमन करके पूछा कि “हे स्वामिन्! उदायन मुनि के कुमार सभीचि की क्या गति होगी ? प्रभु ने फरमाया जब उदायन अपने भाणजे केशी को राज्य देगा, तब प्रभावती का पुत्र अभिचि विचार करेगा कि मेरे जैसा राज्याधिकारी और भक्तिवान् पुत्र होने पर भी पिता ने कर्ज देने के समान केशी को राज्य दिया। यह मेरे पिता का कैसा विवेक ? क्योंकि केशी तो बहन का पुत्र होने से मात्र वह तो हाँ हाँ कहने का ही अधिकारी है। परंतु मेरे पिता तो स्वतंत्र है, सेवा किसलिए करूं? क्योंकि मैं तो राजपुत्र हूँ।' ऐसा सोचकर पिता से पराभव पाया हुआ वह अभिचि कुणिक के पास जाएगा। ‘अभिमानी पुरुषों का पराभव होने पर विदेश गमन करना ही श्रेष्ठ है। कुणिक अभिचि का मौसी का पुत्र था, अभीचि को आया
284
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)