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और एक जहाज तैयार करवा कर उसमें प्रचुर भाता (अन्न-पानी) आदि भरा। लिया हुआ द्रव्य अपने पुत्रों में बांट दिया। तब वह वृद्ध कुमारनंदी के साथ में बैठकर समुद्रमार्ग से चल दिया। बहुत दूर जाने के पश्चात् उस वृद्ध ने कुमार नंदी को कहा कि “इस समुद्र के किनारे पर स्थित पर्वत के प्रत्यंत भाग में जो यह बड़ का वृक्ष दिखाई देता है, उसके नीचे जब यह जहाज पसार हो, तब तुम उस वृक्ष को शाखा (डाल) को पकड़ लेना। पंचशैलद्वीप में से तीन पैर वाला भारंड पक्षी उस वृक्ष के ऊपर आकर बैठेगें। जब वे पक्षी निद्राधीन हो जावें तब उनमें से एक के पैर में तुम चिपक जाना। तेरे शरीर को वस्त्र के साथ बांधकर गाढ़ रीति से बांधकर दृढ़ मुट्ठियों से पकड़ लेना। जब प्रातः काल में जब वे भारंड पक्षी उड़ेगे तब उनके साथ तुम पंचशीलद्वीप में पहुँच जावोगे। यह यानपात्र अर्थात् जहाज भी समुद्र के वमन (तूफान) में घिरकर टकराकर टूट जाएगा। इसलिए यदि तुमने बड़ को पकड़ा नहीं तो यहीं पर मृत्यु हो जावेगी।
(गा. 342 से 348) स्वर्णकार ने उसके कहे अनुसार वर्तन किया, तो वे भारंडपक्षी उसे उठा ले गये एवं वह पंच शैलद्वीप पहुँच गया। पंचशैलद्वीप में आए हुए उस सुनार की देखकर वे दोनों देवियाँ खुश हो गई। उस पर अनुरक्त होकर वे बोली किहे अनघ! तेरे इस मनुष्य शरीर से हम भोग्य नहीं हो सकती इसलिए अग्नि में प्रवेश करके तू पंचशैलगिरि का अधिपति, हो जा।' यह सुनकर 'अब मुझे क्या करना? और कहाँ जाना? ऐसा सोनी के कहने पर उन्होंने हाथ के संपुट में उसे लेकर चंपानगरी के उद्यान में उसे छोड़ दिया। लोगों ने उसे पहचान लिया और उससे वृत्तांत पूछा। तब उसने अपनी सर्व कथा कह सुनाई। हासा प्रहासा का स्मरण करके वह अग्नि में जलकर मरने को तैयार हो गया। उसके नागिल मित्र ने आकर प्रतिबोध करके कहा- “तुझे कायरपुरुष को योग्य इस तरह मरना उचित नहीं है। यह मनुष्य जन्य दुष्प्राप्य है। उसे तुच्छ भोगफल प्राप्त करने के लिए वृथा ही हार मत जा। ‘रत्न के बदले कोड़ी कौन मूर्ख ले ? सुखभोग के लिए भी तू अर्हत् धर्म का आश्रय ले क्योंकि स्वर्ग और मोक्ष का प्रदाता वह धर्म अर्थ और काम में भी कामधेनू के समान है, ऐसा बहुत समझाकर उसे रोका, परंतु वह अग्निप्रवेश द्वारा मृत्यु प्राप्त करके पंचशैल का अधिपति बन गया।
(गा. 349 से 351)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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