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बंधन में आने से तुम्हारा जीवितव्य मेरे आधीन है।' उदयन ने सोचा “अभी तो इस कन्या को अभ्यास करवाकर काल निर्गमन करूं। क्योंकि जीवित नर भद्र देखता है।' इस प्रकार चित्त में निश्चय करके वत्सराज ने चंडप्रद्योत के आदेश को स्वीकार किया। “जो समयज्ञ हो, वह पुरुष है।" चंडप्रद्योत ने कहा – मेरी पुत्री काणी है, इसलिए तुम कभी भी उसे देखना नहीं अन्यथा वह लज्जित होगी।' इस प्रकार उदयन को कहकर उसने अतःपुर में जाकर राजकुमारी को कहा कि, “तुझे गांधर्व विद्या की शिक्षा देने गुरु आए हैं, परंतु वह कुष्टि है, इसलिए तुझे उसे प्रत्यक्ष देखना नहीं।" कन्या ने उसे स्वीकार कर लिया। वत्सराज ने उसे गांधर्वविद्या सिखाना प्रारंभ किया। परंतु प्रद्योत राजा से ठगे जाने के कारण दोनों एक दूसरे के सन्मुख देखते भी नहीं। एक बार 'मैं इसको देखू तो सही ‘ऐसा वासवदत्ता के मन में आया। इससे वह शून्य मन होकर पढ़ने लगी। क्योंकि 'मन के अधीन ही चेष्टा होती है।' वत्सराज ने उस समय अभ्यास में शून्यता देखकर अवंतीपति की कुमारी का तिरस्कार करते हुए कहा कि 'अरे काणी! सीखने में ध्यान न देकर तूं क्यों गांधर्व विद्या का विनाश कर रही है ? क्या तू दुःशिक्षिता है ? ऐसे तिरस्कार से कुपित होकर उसने वत्सराज को कहा कि 'तुम स्वयं कुष्ठि हो वह तो देखते नहीं और मिथ्या ही मुझे काणी कहते हो?' वत्सराज ने विचार किया कि 'जैसा मैं कुष्ठि हूँ, वैसी ही यह काणी होगी अर्थात् ये दोनों ही बातें झंठी हैं। तब तो अवश्य ही इसे देखू। ऐसा विचार करके चतुर उदयन ने शीघ्र ही मध्य में रहे वस्त्र के पर्दे को दूर कर दिया। तब बादलों से मुक्त हुई चंद्रलेखा के सदृश वासवदत्ता उसे दृष्टिगत हुई। वासवदत्ता ने भी लोचन विस्तरित हुए साक्षात् कामदेव तुल्य सर्वांग सुंदर उदयन कुमार को देखा। वासवदत्ता और वत्सराज ने परस्वर अवलोकन करके अनुराग की समृद्धि को सूचित करने वाला स्मित प्रदान किया। प्रद्योतकुमारी बोली, 'हे सुंदर! धिक्कार है मुझे कि मेरे पिता के छल से मैंने अमावस्या के चंद्र रूप गणना करके मैंने आज तक आपको निहारा नहीं। हे कलाचार्य! आपने आपकी कला जो मुझ में संक्रमित की है, वह आपके ही उपयोग में आवे। अर्थात् आप ही मेरे स्वामी हो। वत्सराज ने कहा कि, भद्रे! तू काणी है ऐसा कहकर तेरे पिता ने मुझे भी तुझे देखने से इन्कार करके मुझे भी छला है। हे कांते! अभी तो यहाँ रहते हुए अपना योग हो ही रहा है, पश्चात् समय आने पर जैसे अमृत को गरुड़ ले गया, उसी भांति मैं भी तुझे हरण करके ले जाऊंगा। इस प्रकार स्वयंदूती रूप
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)