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________________ अपने गोलक (पति के होते हुए पर पुरुष से उत्पन्न) या कुंड (पति की मृत्यु के पश्चात् पर पुरुष से उत्पन्न) जाति के पुत्रों को भी छोड़ नहीं देती।'' चेल्लणा बोली- “हे नाथ! यह पुत्र रूप में आपका बैरी है, कारण कि इसके गर्भ में आते ही मुझे महा पापकारी दोहद उत्पन्न हुआ था, इसी कारण मैंने उसे जन्म होते ही छोड़ दिया था। क्योंकि पति का कुशल चाहने वाली स्त्रियाँ पुत्र हो या अन्य कोई हो, यदि वह पति को अहितकारी हो तो उससे क्या मतलब?' तब श्रेणिक राजा ने कहा कि, यदि इस ज्येष्ठ पुत्र को ही तू छोड़ देगी तो मेरे अन्य पुत्र भी पानी के बुदबदे जैसे स्थिर नहीं रहेंगे। इस प्रकार पति की आज्ञा से यद्यपि इच्छा न होने पर भी सर्प की तरह स्तनपान कराकर पालन पोषण करने लगी। (गा. 295 से 305) चेलणा का वह पुत्र कांति में चंद्र के भांति था एवं अशोक वन में सर्वप्रथम दिखाई दिया था, इससे राजा ने उसका नाम अशोकचंद्र रखा। जब उसे वन में छोड़ा था, तब उसकी कनिष्ठिका अंगुली जो कि अशोक वृक्ष के दल जैसी कोमल थी, उसे कुकुडी (मुर्गी) ने खा डाली थी उसकी पीड़ा से रुदन करते हुए उस बालक की अंगुली रुधिर-पीप (मवाद) से व्याप्त थी, उसे राजा ने स्नेह से मुँह में डाली, तब वह बालक रोता हुआ बंद हो गया। अनुक्रम से कितनेक दिन में वह अंगुली का घाव भरा। परंतु वह अंगुली तो छोटी ही रही। इससे उसके साथ धूलिक्रीड़ा करनेवाले बालक उसे कूणक (छोटी अंगुली वाला) कहने लगे। (गा. 306 से 309) उसके पश्चात् चेल्लणा देवी के हृदय कमल में सूर्य रूप हल्ल और विहल्ल नाम के दो अन्य पुत्र हुए। चेलणा देवी के ये तीनों ही पुत्र बड़े हुए। तब मानों मूर्तिमान् प्रभुत्व, मंत्र और उत्साह ये तीन शक्ति हों, इस प्रकार नित्य राजा का अनुसरण करने वाले हुए। उनकी माता चेल्लणा पिता के द्वेषी कुणिक को गुड़ के लड्ड और हल्ल-विहल्ल को खांड के लड्डू हमेशा भेजती थी। पूर्व कर्म से दूषित वह कूणिक हमेशा मन में यह सोचता कि इस प्रकार का यह भेद श्रेणिक ही करते हैं। अनुक्रम से वह कुणिक मध्यम (यौवन) वय को प्राप्त हुआ। तब स्नेहवाले उन श्रेणिक ने बड़े उत्सव से उसका पद्मावती नामकी राजपुत्री के साथ विवाह किया। (गा. 310 से 314) 144 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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