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प्रकाशकीय
त्रिषष्टि अर्थात् तिरेसठ शलाका पुरुष अर्थात् सर्वोत्कृष्ट महापुरुष। सृष्टि में उत्पन्न हुए या होने वाले जो सर्वश्रेष्ठ महापुरुष होते हैं वे शलाका-पुरुष कहलाते हैं। इस कालचक्र के उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी के आरकों में प्रत्येक काल में सर्वोच्च ६३ पुरुषों की गणना की गई है, की जाती थी और की जाती रहेगी। इसी नियमानुसार इस अवसर्पिणी में ६३ महापुरुष हुए हैं, उनमें २४ तीर्थंकर, १२ चक्रवर्ती, ६ वासुदेव, ९ प्रतिवासुदेव और ९ बलदेवों की गणना की जाती है। इन्हीं ६३ महापुरुषों के जीवन-चरितों का संकलन इस 'त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित' के अन्तर्गत किया गया है। आचार्य हेमचन्द्र ने इसे संस्कृत भाषा में १० पर्यों में विभक्त किया है जिनमें ऋषभदेव से लेकर महावीर पर्यन्त ६३ महापुरुषों के जीवनचरित संगृहीत हैं।
कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचन्द्राचार्य रचित ऐतिहासिक और पौराणिक ग्रन्थ त्रिषष्टिशलाकापुरुष-चरित के 'नवम पर्व' (हिन्दी भाग-७) को प्राकृत भारती अकादमी की पुष्प संख्या ३५९ के रूप में प्रस्तुत करते हुए हमें हार्दिक प्रसन्नता हो रही है।
ग्रन्थ के इस भाग में तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व भवों, विहार स्थल, उनका उपसर्ग, तपस्या, पारणे तथा ८ गणधरों व प्रमुख श्रावकों का वर्णन किया गया है। भगवान पार्श्वनाथ क्षमा और करुणा के अवतार रहे हैं। प्रत्येक भव में उन्होंने अपने प्रतिरोधी कमठ द्वारा जलाई गई उपसर्ग तथा उपद्रवों की अग्नि पर क्षमा की शीतल जल वर्षा की है और उसे 'क्षमा करो भूल जाओ' का पाठ पढ़ाने का प्रयत्न किया है। प्रभु पार्श्वनाथ के समय २०६ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)