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किया लगता है। ऐसा हृदय में विचार करके उसे समझाने का अवसर जानकर उसने एक पत्र में श्लोक लिखकर भेजा। उस श्लोक का भावार्थ इस प्रकार था- दूध से जले पुरुष को दही का त्याग करना घटित नहीं होता, क्योंकि अल्पजल में संभवित पोरवे क्या दूध में भी होते हैं?' इस श्लोक को पढ़कर उसका भावार्थ हृदय में विचार करके सागरदत्त ने भी एक श्लोक लिखकर भेजा। उसका भावार्थ इस प्रकार था- स्त्री कुपात्र में रमती है, सरिता निम्न स्थान में जाती है, मेघ पर्वत पर वर्षता है और लक्ष्मी निर्गुण पुरुष का आश्रय करती है।
(गा. 6 से 12) वणिक् सुता ने यह श्लोक पढ़ा और उसका भावार्थ जान लिया। पुनः उसने उसको बोध देने के लिए दूसरा श्लोक लिखकर भेजा। उसका भावार्थ था- 'क्या कोई स्त्री दोष रहित नहीं होती? यदि होती है, तो रागी स्त्री को क्या देखकर त्याग करना ? रवि अपने पर अनुरक्त हुई संध्या को कभी भी छोड़ता नहीं है। इस श्लोक का वाचन करके उसके ऐसे चतुराई भरे संदेशों से रंजित हुआ सागरदत्त ने उसके साथ विवाह किया और हर्षयुक्त चित्त से प्रतिदिन उसके साथ भोग भोगने लगा।
___ (गा. 13 से 16) ___ एक वक्त सागरदत्त का श्वसुर पुत्र सहित व्यापार के लिए पाटलापथ नगर में गया। यहाँ सागरदत्त भी व्यापार करने लगा। अन्यदा वह विशाल जहाज भरकर समुद्र पार तीर पर गया। सात बार उसका जहाज समुद्र में भंग (टूट) गया, इससे ‘यह पुण्य रहित है' ऐसा कहकर लोग उस पर हंसने लगे। वह वापिस आया, परन्तु निर्धन हो जाने पर भी उसने उद्यम करना नहीं छोड़ा। एक बार इधर-उधर घूमते समय एक लड़का कुए में से पानी निकालते हुए उसे दिखाई दिया। उस लड़के से सात बार तो पानी आया नहीं, परन्तु आठवीं बार पानी आ गया। यह देख सागरदत्त ने विचार किया कि 'मनुष्यों को उद्यम अवश्य ही फलदायक है। जो अनेक विघ्न आने पर भी अस्खलित उत्साह वाले होकर प्रारंभ किया हुआ कार्य छोड़ते नहीं
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (नवम पर्व)