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द्वितीय सर्ग
इस भरतक्षेत्र में मथुरा नामक श्रेष्ठ नगरी है। वह यमुना नदी से मानो नील वस्त्र को धारण करने वाली स्त्री हो, ऐसी शोभा दे रही है। उस नगरी में हरिवंश प्रख्यात राजा वसु के पुत्र बृहद्ध्वज और अनेक राजाओं के पश्चात् यदु नामका एक राजा हुआ। यदु के सूर्य के समान तेजस्वी शूर अभिधान वाला पुत्र था। शूर के शौरि और सुवीर नाम के दो वीर पुत्र हुए। शूर राजा ने संसार से विरक्त होकर शौरि को राज्य सिंहासन पर बिठाकर और सुवीर को युवराज पद देकर दीक्षा ग्रहण की। शौरि ने अपने अनुज बंधु सुवीर को मथुरा का राज्य देकर स्वयं कुशार्त देश में गया। वहाँ उसने शौर्यपुर नाम का एक नगर बसाया। शौरि राजा के अंधकवृष्णि आदि और सुवीर के भोजवृष्णि आदि पुत्र हुए। महाभुज सुवीर मथुरा का राज्य अपने पुत्र भोजवृष्णि को देकर स्वंय सिंधु देश में एक सवीरपुर नगर बसाकर वहाँ रहा। महावीर सौरि राजा के पुत्र अंधकवृष्णि को राज्य सौंप कर सुप्रतिष्ठ मुनि के पास दीक्षा लेकर मोक्ष में गये।
(गा. 1 से 8) मथुरा में राज्य करते हुए भोजवृष्णि के उग्र पराक्रम वाला उग्रसेन नाम का पुत्र हुआ। अंधकवृष्णि के सुभद्रा रानी से दश पुत्र हुए। उनका समुद्र विजय, अक्षोभ्य, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचंद्र और वसुदेव ये नाम स्थापित किए। वे दसों दशार्ह इस नाम से प्रसिद्ध हुए। उनके कुंती और भद्री नाम की दो अनुजा छोटी बहन हुई। उनके पिताने कुंती को पांडू राजा को और भद्री को दमघोष राजा को सौंपी। भद्री का विवाह भी पांडू ही से हुआ था।
(गा. 9 से 12)
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)