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________________ लेकर मृत्यु के पश्चात् देवता बना हूँ। तुमने पहले मुझसे मांग की थी। इससे तुमको बोध देने के लिए मैं यहाँ आया हूँ। नेमिप्रभु ने कहा था कि 'जराकुमार से कृष्ण की मृत्यु होगी।' वैसा ही हुआ है क्योंकि सर्वज्ञ भाषित कभी भी अन्यथा नहीं होता। अपना कौस्तुम रत्न निशानी रूप में देकर कृष्ण ने जराकुमार को पांडवों के पास भेज दिया है। बलदेव बोले- हे सिद्धार्थ! तुमने यहाँ आकर मुझे बोध दिया, यह बहुत अच्छा किया। परंतु इस भ्राता की मृत्यु केदुःख से पीड़ित अब मैं क्या करूँ ? वह कहो। सिद्धार्थ बोला- श्री नेमिनाथ प्रभु के विवेकी भ्राता तुमको अब दीक्षा के बिना कुछ भी काल व्यतीत नहीं करना चाहिए। बहुत अच्छा! ऐसा कहकर बलदेव ने उस देवता के साथ सिंधु और समुद्र के संगम के स्थान पर आकर कृष्ण के शरीर का अग्निसंस्कार किया। उस समय बलराम को दीक्षा लेने का इच्छुक जानकर महाकृपालु श्री नेमिनाथ प्रभुजी ने एक विद्याधर मुनि को शीघ्र ही वहाँ भेजा। राम ने उनके पास दीक्षा ली। पश्चात् तुंगिका शिखर पर जाकर तीव्र तप करने लगे। वहाँ सिद्धार्थ देव उनका रक्षक बनकर रहा। (गा. 15 से 37) एक समय बलराम मुनि मासक्षमण के पारणे के लिए नगर में गए। वहाँ कोई स्त्री बालक को लेकर कुए के किनारे पर खड़ी थी। वह राम का अतिशयरूप देखकर उनको देखने में ही निमग्न हो गई। इससे व्यग्र चित्तवाली उसने घड़े में बांधने वाली रस्सी घड़े के बदले बालक के कंठ में बाध दी। फिर जैसे ही वह बालक को कुए में डालने लगी, उतने में बलराम को यह दिखाई दिया। इससे उन्होंने विचार किया कि अनर्थकारी मेरे इस रूप को धिक्कार हो! अब मैं किसी भी गांव या नगर में जाऊँगा नहीं। मात्र वन में काष्टादिक को लेने आने वालों से जो भिक्षा मिलेगी, उससे ही पारणा करूँगा। इस प्रकार निर्धार करके उस स्त्री को (मोह) निवारण करके बलदेव मुनि तुरंत ही जंगल में चले गये। वहाँ आकर मासिक आदि दुस्तप तप किया एवं तृण काष्टादिक वहन करने वाले लोगों के पास से प्रासुक भात पानी वहर कर अपना निर्वाह करने लगे। (गा. 38 से 43) एक बार काष्ठादिक को ले जाने वाले उन लोगों ने अपने-अपने राजा के पास जाकर कहा कि 'देवरूपी पुरुष इस वन में तप कर रहा है। यह सुनकर 300 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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