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________________ अन्यदा प्रभु विहार करते हुए द्वारका के समीप पधारे। वहाँ सहस्राम्रवन में समवतसरे। उस समय देवकी के छः पुत्रों ने छठ तप के पारणे के लिए दोदो की जोड़ी होकर तीन-तीन भाग में अलग-अलग ठहरने के लिए प्रवेश किया। उसमें प्रथम अनीकयशा और अनंतसेन देवकी के घर गये। उनको कृष्ण के जैसा देखकर बहुत हर्ष हुआ। तब उसने सिंह केशरिया मोदक से प्रतिलाभित किया। वहाँ से अन्यत्र गए। इतने में उनके सहोदर अजितसेन और निहल शत्रुनाम के दो महामुनि वहाँ पधारे। उनको भी देवकी ने प्रतिलाभित किया। इतने में देवयशा और शत्रुसेन नाम की तीसरी जोड़ी के दोनों महामुनि भी वहाँ पधारे। उनको नमस्कार करके अंजली जोड़कर देवकी ने पूछा, 'हे मुनिराज! क्या आप दिग्भ्रम से पुनःपुनः यहाँ आ रहे हो? (गा. 98 से 104) या फिर मेरी मति को भ्रम हो गया है क्या आप वे नहीं है ? अथवा संपत्ति से स्वर्गपुरी जैसी इस नगरी में क्या महर्षियों को योग्य भक्तपान नहीं मिलता? ऐसे देवकी के प्रश्न से वे मुनि बोले- हमको कुछ भी दिग्मोह नहीं हुआ। परंतु हम छः सहोदर भाई हैं। भद्दिलपुर के निवासी है और सुलसा एवं नागदेव के पुत्र हैं। श्री नेमिनाथ प्रभु के पास धर्म श्रवण करके हम छहों ही भाईयों ने दीक्षा ले ली है। आज हम तीन जोड़ में बहरने निकले हैं। तो तीनों ही युगल अनुक्रम से आपके यहाँ आ गए लगते हैं। यह सुनकर देवकी विचार में पड़ गई कि 'ये छहों हो मुनि कृष्ण के जैसे कैसे हैं ?' इनमें तिलमात्र जितना भी फर्क नहीं है। पूर्व में अतिमुक्त साधु ने मुझे कहा था कि 'तुम्हारे आठ पुत्र होंगे और वे सभी जीवित रहेंगे तो ये छहों ही मेरे पुत्र तो नहीं? इस प्रकार विचार करके देवकी दूसरे दिन देवरचित समवसरण में विराजित श्री नेमिप्रभु को पूछने के लिए गई। देवकी के हृदय के भाव जानकर देवकी के पूछने से पहले ही प्रभु ने कहा कि हे देवकी! तुमने तो कल देखे थे वे छहों तुम्हारे ही पुत्र हैं। उनको नैगमेषी देव ने जीवित ही तुम्हारे पास से लेकर सुलसा को दिये थे। वहाँ उन छहों साधुओं को देखकर देवकी के स्तन में से पय झरने लगा। उसने उन छहों मनियों को प्रेम से वंदन करके कहा कि 'हे पुत्रों! तुम्हारे दर्शन हुए यह बहुत अच्छा हुआ।' मेरे उदर से जन्म लेकर एक को उत्कृष्ट राज्य मिला और तुम छहों ने दीक्षा ली, यह तो बहुत ही उत्तम हुआ, परंतु मुझे इसमें इतना ही खेद है कि तुममें से मैंने किसी को खिलाया या पालनपोषण नहीं किया। भगवान् 274 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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