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________________ इससे तो मैं ऐसा मानता हूँ कि इस नेमिनाथ के बल के समान चक्रवर्ती और इंद्र का बल भी नहीं है। उसका ऐसा बल है, इस उपरांत भी यह अपना अनुज बंधु समग्र भारतवर्ष के अधिपति क्यों नहीं होते? इस प्रकार सुस्त होकर क्यों बैठे रहते है ? बलराम ने कहा- भाई! जिस प्रकार वह बल में चक्रवर्ती से भी अधिक ज्ञात होता है, वैसे वह शांतमूर्ति राज्य से भी निस्पृह लगता है। राम के इस प्रकार कहने पर भी अपने अनुज बंधु के बल पर शंकित होते कृष्ण को देवताओं ने कहा- 'हे कृष्ण! पूर्व में श्री नेमिप्रभु ने कहा था कि 'मेरे पश्चात् नेमिनाथ तीर्थंकर होंगे, वे कुमार ही रहेंगे, इसलिए उनको राज्यलक्ष्मी की इच्छा नहीं है। वे समय की राह देख रहे हैं। योग्य समय प्राप्त होने पर बाल ब्रह्मचारी रहकर वे दीक्षा ग्रहण करेंगे, इसलिए आप तनिक भी इसकी चिंता मत करना। देवताओं द्वारा इस प्रकार के वचन सुनकर कृष्ण ने प्रसन्न होकर बलराम को विदा किया। पश्चात् स्वयं अंतःपुर में जाकर वहाँ नेमिनाथ को बुलाया। (गा. 22 से 37) दोनों बंधुओं ने रत्न के सिंहासन पर बैठकर वीरांगनाओं द्वारा ढोले गए जल कलशों द्वारा स्नान किया। देवदूष्य वस्त्र से पोंछकर दिव्य चंदन का विलेपन किया। जब वहाँ बैठकर दोनों वीरों ने साथ ही भोजन किया। तब कृष्ण ने अंतःपुर के रक्षकों को आज्ञा दी कि, 'ये नेमिनाथ मेरे भाई हैं और मुझ से भी अधिक हैं, इसलिए इसको अंतःपुर में जाते हुए कभी भी रोकना नहीं। सर्वभ्रातृ पत्नियों (भोजाईयों) के बीच में वे नेमिकुमार भी क्रीड़ा करे उसमें कोई भी दोष नहीं है। फिर सत्यभामा आदि अपनी पत्नियों को आज्ञा दी कि यह नेमिकुमार मेरा प्राण जैसा है। वह तुम्हारा देवर है, उसका मान रखना और उसके साथ निःशंक होकर क्रीड़ा करना। इस प्रकार कृष्ण के कहने पर सर्व अंतःपुर की स्त्रियों ने उसी समय नेमिकुमार की पूजा की। नेमिकुमार भोग से पराङ्मुख और निर्विकारी रूप से उनके साथ विहार करने लगे। अपने सदृश ही अरिष्टनेमि कुमार के साथ कृष्ण अंतःपुर सहित हर्ष से क्रीड़ागिरि आदि में रमण करने लगे। (गा. 38 से 44) एक बार बसंत ऋतु में कृष्ण नेमिनाथ, नगरजनों और सर्व यादवों के साथ अंतःपुर सहित रैवताचल के उद्यान में क्रीड़ा करने गये। जिस प्रकार नंदनवन में सुर-असुर के कुमार क्रीड़ा करते हैं वैसे ही वहाँ यादव कुमार और त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 245
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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