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नेमीश्वर कुमार ने गंभीर वाणी से अपने सरल प्रकृतिवाले माता-पिता को विवाह के उपक्रम संबंधी आग्रह का निवारण किया।
(गा. 43 से 47) उग्रसेन राजा की रानी धारिणी ने योग्य समय पर राजीमती नामकी एक पुत्री हुई, जो कि अद्वितीय रूप लावण्य सहित अनुक्रम से वृद्धि प्राप्त करने लगी। इधर द्वारका में धनसेन नामका गृहस्थ रहता था। उसने उग्रसेन के पुत्र नमःसेन को अपनी कमलामेला नामकी पुत्री दी। एक बार नारद घूमते-घूमते नमःसेन के घर आए। उस समय नमःसेन का चित्त विवाहकार्य में व्यस्त था। इससे उसने नारद की पूजा की नहीं। नारद ने क्रोधित होकर उसका अनर्थ करने के लिए बलराम के पुत्र निषध के पुत्र सागरचंद्र जो कि शांब आदि को अति प्रिय था, उसके पास आये। नारद को आते देखकर उनके समक्ष जाकर सत्कार करके पूछा कि- 'देवर्षि! सर्वत्र घूमते रहते हो, तो किसी स्थान पर कुछ आश्चर्य देखा हो तो कहो। क्योंकि आप आश्चर्य उत्पन्न करने वाले वृत्तांत ही सुनाते हो।' नारद बोले- इस जगत् में आश्चर्य रूप कमलामेला नामकी धनसेन की एक कन्या मेरे देखने में आई है। परंतु उसने वह कन्या कभी की नमःसेन को दे दी है। इस प्रकार कहकर नारद उड़कर अन्यत्र चले गए। परंतु यह सुनकर सागरचंद्र उसमें अनुरक्त हो गया। तब जैसे चित्त रोग से उन्मत्त हुआ जैसे सवर्ण पीतवर्ण ही देखता है, वैसे वह सागरचंद्र उसके ही ध्यान में निमग्न रहने लगा। वहाँ सेनारद कमलामेला के घर गए। उस राजकुमार ने भी
आश्चर्य से पूछा- तब कूट बुद्धिवाले नारद ने कहा कि 'इस जगत में दो आश्चर्य दीखते हैं, एक तो रूप संपत्ति में श्रेष्ठकुलकर सागरचंद्र और दूसरा कुरूपियों में श्रेष्ठ कुमार नमःसेन। यह सुनकर कमलामेला नमःसेन को छोड़कर सागरचंद्र में आसक्त हो गई। नारद ने सागरचंद्र के पास जाकर उसका अनुराग बताया। सागरचंद्र कमलामेला के विरह रूप सागर में गिर पड़ा है, ऐसा जानकर उसकी माता और अन्य कुमार भी चिन्तित हो गए। इतने में शांब वहाँ आया। उसने इस प्रकार सागरचंद्र को बैठा देखकर उसके पीछे जाकर उसकी दोनों आंखें हाथों से ढंक दी। सागर बोला कि- 'क्या यहाँ मेला आ गई है?' तब शांब बोला- 'अरे मैं कमलामेलापक (कमला का मिलाप कराने वाला) आया हूँ।' सागरचंद्र बोला- तब तो ठीक, तुम ही मेरा कमलामेला से मिलाप करवा देना, अब मुझे कोई दूसरा उपाय सोचने की जरूरत नहीं है। इस प्रकार उसका कथन
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)