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________________ उद्यत होकर पांडवों के पीछे स्थित रहे। उनके पीछे चंद्रयथ, सिंहल, बर्बर, कांबोज केरल और द्रविड़ राजा रहे। उनके भी पीछे साठ हजार रथों को लेकर धैर्य और बल के गिरिरूप महासेन का पिता अकेला खड़ा रहा। उनके रक्षण के लिए भानु, भामर, भीरू, आसित, संजय भानु, धृष्णु, कंपित, गौतम, शत्रुजय, महासेन, गंभीर, बृहद्धवज, वसुवर्म, उदय, कृतवर्मा, प्रसेनजित्, दृढ़वर्या, विक्रांत और चंद्रवर्मा ये सर्वप्रमाण करते हुए रक्षण करने को खड़े रहे। इस प्रकार गुरुड़ध्वजारूढ़ रथी कृष्ण ने बराबर गुरुड़व्यूह की रचना की। (गा. 243 से 260) इस अवसर पर शक्रेन्द्र ने श्री नेमिनाथ को भ्रातृस्नेह से युद्ध के इच्छुक जानकर विजयी शस्त्रों सहित अपना रथ मातलि सारथि के साथ भेजा। मानो सूर्य का उदय हुआ हो वैसा प्रकाशित अनेक रत्नों द्वारा निर्मित वह रथ लेकर मातलि वहाँ आये। अरिष्टनेमि ने उसे अलंकृत किया। समुद्रविजय ने कृष्ण के अनुजबंधु अनाधृष्टि का सेनापति पद पर पट्टबंध करके अभिषेक किया। उस समय कृष्ण के सैन्य में सर्वत्र जयनाद हुआ, इससे जरासंध का सैन्य अत्यन्त क्षुब्ध हो गया। ___ (गा. 261 से 264) उस समय मानो परस्पर एक दूसरे के किनारे बांधे हो, वे छूटे बिना दोनों व्यूह के अग्रिम सैनिकों ने महाउत्कट युद्ध आरंभ किया। इससे प्रलयकाल के मेघ से उद्भ्रांत हुए पूर्व और पश्चिम सागर में तरंगों की तरह दोनों व्यूह में विचित्र प्रकार के अस्त्र आ–आकर गिरने लगे। दोनों व्यूह बहुत समय तो प्रहेलिका की भांति परस्पर दुर्भेद्य हो गये। जरासंध के अग्रसैनिकों ने स्वामिभक्ति से दृढ़ हुए गुरुडव्यूह के अग्रसैनिकों को भग्न कर दिया। उस समय कृष्ण जो कि गुरुड़व्यूह की आत्मा थे, उन्होंने हाथ रूप पताका को ऊँचा करके अपने सैनिको को स्थिर कर दिया। इस अवसर पर दक्षिण और वाम भाग में रहे हुए गरुड़ के पंख रूप महानेमि और अर्जुन तथा उस व्यूह की चोंच रूप अग्रभाग में स्थिति अनाघृष्टि ये तीनों भी कुपित हुए। महानेमि ने सिंहनाद नामका शंख, अनाधृष्टि ने बलाहक नामका शंख और अर्जुन ने देवदत्त नामका शंख फूंका। उन शंखों का नाद सुनकर यादवों ने कोटि वाजित्रों का नाद किया। इससे उन तीन शंखों का नाद, अन्य अनेक शंख के नाद से शंखराज के समान अनुसरण त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 225
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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