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________________ की तरह छलरूप बलवाले हैं, उनकी तो वीरों में गणना ही नहीं है । हे स्वामिन्! अंगदेव का राजा कर्ण समुद्र में - मुट्ठि की तरह उनके कोटि संख्या प्रमाण में महारथी वाले सैन्य में है, ऐसा मैं मानता हूँ। शत्रु के सैन्य में नेमि, कृष्ण और राम ये तीन अतिरथी है और तुम्हारे सैन्य में तुम एक ही हो। इससे दोनों के सैन्य में बहुत अंतर है। अच्युत आदि इंद्र जिनको भक्ति से नमस्कार करते हैं, उस नेमिनाथ के साथ युद्ध करने का कौन साहस कर सकता है ? फिर कृष्ण पक्ष के देवताओं ने छल करके तुम्हारे पुत्र काल को मार डाला। इससे तुम भलीभांति जान लेना कि अभी दैव तुमसे पराङ्मुख है । बलवान् यादव भी न्याय के योग्य अवसर के अनुसार मथुरापुरी को छोड़कर द्वारिका नगरी में चले गये थे । परंतु तुमने तो जिस प्रकार बिल में रहे हुए सर्प को यष्टि से ताड़न करके जगावें वैसा किया है। इससे ही वह कृष्ण तुम्हारे सामने आया है । स्वयमेव आया नहीं है। इतना सबकुछ हो जाने पर भी अभी भी हे राजन् ! उसके साथ युद्ध करना उपयुक्त नहीं है । यदि तुम युद्ध नहीं करोगे तो स्वयं ही वापिस चले जायेंगे। (गा. 207 से 225) इस गोपाल के सैन्य को तो मैं क्षणभर में भस्म कर दूँगा । इसलिए रण में से निवृत्त करने वाले तेरे इस मनोरथ को धिक्कार है । इस प्रकार उनके वचन सुनकर डिंभक नाम का एक उनका मंत्री उनके भाव के अनुसार वचन बोला कि 'हे राजेन्द्र ! अब तो यह रणसंग्रहा का समय आ गया है । तो उसका आप त्याग करना नहीं। हे प्रभो ! संग्राम में सन्मुख रहते हुए यशस्वी मृत्यु हो तो भी उत्तम है। परंतु रण में से पराङ्मुख होकर जीना ठीक नहीं है । इसलिए अपने सैन्य में चक्ररत्न की तरह अभेदा चक्रव्यूह रचकर अपने शत्रु का सैन्य का हनन कर देंगे।' इस प्रकार उसके वचन सुनकर हर्षिक होकर जरासंध ने उसके शाबासी दी और चक्रव्यूह रचने के लिए अपने पराक्रमी सेनापतियों को आज्ञा दी। इससे अर्धचक्री जरासंध के आदेश से हंसक, डिंभक आदि मंत्रिगण और दूसरे सेनापतियों ने चक्रव्यूह की रचना की । (गा. 226 से 233) उस हजार आरे वाले चक्रव्यूह संबंधी चक्र में प्रत्येक आरे में एक-एक बड़े राजा रहे, उन प्रत्येक राजा के साथ सौ हाथी, दो हजार रथ, पाँच हजार त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व ) 223
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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