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________________ यह देवताओं द्वारा प्ररूपित माया थी। पश्चात यवन आदि सर्व वापिस लौट कर राजगृही आये और सर्व वृत्तांत जरासंध को बताया। यह सुन जरासंध मूर्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा। कुछ समय पश्चात सचेतन होकर वह हे काल! हे काल! हे कंस ! हे कंस! बोलता हुआ रोने लगा। (गा. 380 से 384) यहाँ काल की मृत्यु के समाचार जानकर मार्ग में चलते हुए यादवों को पूर्ण प्रतीति हो गई और क्रोष्टुकि को अत्यधिक हर्ष से पूजने लगे। मार्ग में एक वन में पड़ाव डाल कर रहे थे कि वहाँ अतिमुक्त चारणमुनि आ पहुँचे। दशार्हपति समुद्रविजय ने उनकी पूजा की। उन महामुनि को प्रणाम करे उनने पूछा- हे भगवन्! इस विपति में हमारा अंत में क्या होगा? मुनि बोले- भयभीत मत होओ आपके पुत्र कुमार अरिष्टनेमि त्रैलोक्य में अद्वैत पराक्रमी बाईसवें तीर्थकर होंगे और बलदेव एवं वासुदेव ऐसे राम और कृष्ण द्वारिका नगरी बसाकर रहेंगे। (गा. 385 से 389) जरासंध का वध करके अर्धभरत के स्वामी होंगे। यह सुनकर हर्षित होकर समुद्रविजय ने पूजा करके मुनि को विदा किया और स्वंय सुखपूर्वक प्रयाण करते हुए अनुक्रम से सौराष्ट्र देश में आए। वहाँ रैवत गिरनारगिरी के वायव्य दिशा की अढार कुलकोटि यादवों के साथ छावणी डाली। वहाँ कृष्ण की स्त्री सत्यभामा ने दो पुत्रों को जन्म दिया। उन दोनों पुत्रों की जातिवंत सुवर्ण जैसी काति थी। पश्चात क्रोष्टुकि द्वारा बताए गए शुभ दिन में कृष्ण ने स्नान करके बलिदान के साथ समुद्र की पूजा की और अष्टम तप किया। तृतीय रात्रि को लवणसागर के अधिष्ठाता सुस्थित देव आकाश में रहकर अंजलि जोड़कर प्रकट हुआ। उन्होंने कृष्ण को पांचजन्य एवं राम को सुघोषा नामक शंख दिया। इसके अतिरिक्त दिव्यरत्नमाला और वस्त्र दिये। पश्चात कृष्ण को कहा, आपने मुझे किस लिए याद किया है ? मैं सुस्थित नाम का देव हूँ, कहो आपका क्या काम करूँ? कृष्ण ने कहा, हे देव! पूर्व के वासुदेव की द्वारका नाम की जो नगरी यहाँ थी, जो तुमने जल में निमग्न कर दी है, अब मेरे निवास के लिए वही नगरी वाला स्थान बनाओ। स्थान निर्देश करके वह देव इंद्र के पास जाकर उनसे वास्तविकता का निवेदन किया। (गा. 389 से 398) 174 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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