________________
इस प्रकार नैमितिक के वचन से अपने शत्रु जानकर अरिष्टादिक चारों बलवान पशुओं को कंस ने वृंदावन में खुला छोड़ दिया और चाणूर तथा मुष्टिक नामक दोनों मल्लों को भी श्रम करने का आदेश दिया। मूर्तिवंत अरिष्ट जैसा अरिष्ट बैल शरदऋतु में जाते-आते गोपालकों पर उपद्रव करने लगा। वह बैल नदी के तट पर कीचड़ उड़ावे वैसे श्रृंगों के अग्रभाग से गायों को उड़ाने लगा। सींग के अग्रभाग से घी के अनेक भाजनों को फोड़ने लगा। उसके ऐसे उपद्रव से हे कृष्ण! हे राम! हमारी रक्षा करो, हमारी रक्षा करो ऐसे अतिदीन कलकल शब्द ग्वाले करने लगे। उनका ऐसा कलकलाहट सुनकर संभ्रम से कृष्ण क्या हुआ? ऐसे बोलते हुए राम सहित वहाँ दौड़े चले आए। तब वहाँ उस महाबलवान वृषभ को देखा। उस समय हमें गाये नहीं चाहिए और न ही घी, सो वृद्धों द्वारा निषेध करने पर भी कृष्ण ने उस वृषभ को बुलाया। उनके आहवान से सींगों को नमाकर रोष से मुख का आकुंचन करके वह बैल गोविंद के सामने दौड़ा। तब उसे सींगों से पकड़कर उसका गला मोड़कर निरूच्छवास करके कृष्ण ने उसे मार डाला। अरिष्ट के मरण से मानो उनकी मृत्यु का ही मरण हुआ हो ऐसे वे ग्वाले खुश हुए और कृष्ण को देखने की तृष्णा रखते हुए उसे पूजने लगे।
(गा. 209 से 216) कृष्ण वृंदावन में क्रीड़ा करते थे उस समय उन्होंने कृष्ण के केशी नाम के बलवान अश्व और यमराज के जैसे दुष्ट आश्य रखता हुआ मुँह फाड़ता हुआ वहाँ आया। दांतो से बछडों को पकड़ता हुआ, खुरों से गर्भिणी गायों को मारता हुआ और भयंकर चित्कार करता हुआ देख उस अश्व की कृष्ण ने तर्जना की। फिर उसे मारने के इच्छुक प्रसारित और दांत रूपी करवत से दारूण उसे मुख में वज्र के जैसा अपना हाथ कृष्ण ने मोड़कर डाल दिया। ग्रीवा तक ले जाकर उसके द्वारा उसका मुख ऐसा फाड़ डाला कि जिससे उस अरिष्ट के समूह की तरह तत्काल प्राणरहित हो गया। उसी वक्त कंस का पराक्रमी खर और मेढा वहाँ आये, उनको भी महाभुज कृष्ण ने लीलामात्र में मार डाला।
(गा. 217 से 221) इन सबको मारने के समाचार सुनकर कंस ने अच्छी तरह से परीक्षा करने के लिए शार्ड धनुष के पूजोत्सव के बहाने सभा में स्थापना की। उसकी उपासना करने के लिए अपनी कुमारिका बहन सत्यभामा को उसके पास बिठाया और
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
163