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________________ कहा, कन्या के लिए वर स्वंय ही यहाँ आवे, यह रीति नहीं है । इस रीति से आने वाले वर को मैं देवकी नहीं दूँगा । ऐसे देवक राजा के वचन सुनकर कंस और वसुदेव खिन्न मन होकर अपनी छावनी में आए। देवक राजा अपने अंतःपुर में गए। वहाँ देवकी ने हर्ष से पिता को प्रणाम किया तब हे पुत्री ! योग्य वर को प्राप्त कर। ऐसी देवक ने आशीष दी । देवक ने देवी रानी को कहा कि आज वसुदेव को देवकी दिलाने के लिए कंस ने उत्सुक होकर मेरे पास माँग की, परंतु पुत्री के विरह को सहन न करने के कारण मैंने यह बात कबूल नहीं की । यह सुनकर देवी खिन्न हुई देवकी ने उँचे स्वर में रोना चालू किया । (गा. 57 से 64) कहा तुम खेद मत उनका वसुदेव की ओर प्रतिभाव देखकर देवक ने करो, अभी तो मैं पूछने को आया हूँ । तब देवी ने कहा, ये वसुदेव देवकी के योग्य वर पुत्री के पुण्य से ही यहाँ वरण करने के लिए आए हैं। इस प्रकार उनके विचार जानकर तत्काल देवक ने मंत्री को भेजकर कंस और वसुदेव को वापिस बुलाया। पहले जिनका अपमान किया था अब उनका बहुत सत्कार किया । पश्चात शुभ दिन में तार स्वर से गाते धवल मंगल के साथ वसुदेव और देवकी का विवाहोत्सव हुआ। देवक ने पाणिग्रहण के समय वसुदेव को सुवर्ण आदि विपुल पहरामणी और दस गोकुल के पति नंद को कोटि गायों के साथ दी । वसुदेव और कंस नंद सहित मथुरा में आए, वहाँ कंस ने अपने सुहद की खुशहाली में बड़ा महोत्सव आरंभ किया। (गा. 65 से 70 ) इसी समय उन्होंने पूर्व में चारित्र ग्रहण किया था ऐसे कंस के अनुज बंधु अतिमुक्त मुनि तपस्या से कृश अंग वाले कंस के घर पारणे के लिए आए। उस समय मदिरा के वश हुई कंस की स्त्री जीवयशा अरे देवर! आज उत्सव के दिन आए, वह बहुत अच्छा किया। इसलिए आओ, मेरे साथ नृत्य और गायन करो ऐसा कहकर वह मुनि के कंठ से चिपक गई और गृहस्थ की जैसे उनकी बहुत कदर्थना की। उस वक्त ज्ञानी मुनि ने कहा कि जिसके निमित्त यह उत्सव हो रहा है उसका सातवां गर्भ तेरे पति और पिता को मारने वाला होगा। वज्र जैसी उस वाणी को सुनकर तत्काल जीवयशा की जिसके भय से मदावस्था चली गई थी, उसने उन महामुनि को छोड दिया और शीघ्र ही अपने पति को ये समाचार दिये । त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 153
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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