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शकुन बहुत अच्छे हुए थे, इससे यदि तू नल राजा न हो तो वह सब व्यर्थ जाए। इस प्रकार उस ब्राह्मण की बात सुनकर दवदंती को हृदय में ध्यान करता हुआ वह कुबडा अधिक अधिक रूदन करने लगा और अत्याग्रह से उस ब्राह्मण को अपने घर ले गया। पश्चात उसने इस प्रकार कहा कि महासती दवदंती और महाशय नलराजा की कथा कहने वाले तेरा किस प्रकार स्वागत करूं? ऐसा कहकर स्नान भोजन आदि से उसका सत्कार किया और दधिपर्ण के दिये हुए आभरणादि उसे दिये। वह कुशल ब्राह्मण कुशलक्षेम कुंडिनपुर वापिस लौटा। दमयंती को और उसके पिता को देखते हुए कुबड़े की सब बात कही। उसमें मुख्यतः उसने मदोन्नत हुए हाथी को खेदित करके उस पर आरोहण किया। साथ ही सूर्यपाक रसोई बनाई उसका भी उल्लेख किया। साथ ही राजा ने सुवर्णमाला, एक लाख टंक और वस्त्राभूषण दिये उसकी बात कही। स्वंय ने दो श्लोक बनाकर कहे और कुबड़े ने सत्कारपूर्वक उसे जो कुछ दिया सर्व हकीकत कह सुनाई। यह सब सुनकर वैदर्भी ने कहा पिताजी! नलराजा का ऐसा विरूप रूप आहार दोष से या कर्मदोष से हो गया होगा, परंतु गज शिक्षा में निपुणता ऐसा अदभूत दान और सूर्यपाक रसवती यह नलराजा के सिवा किसी से हो नहीं सकता। इसलिए हे तात! किसी भी उपाय से उस कुब्ज को यहाँ बुलाओं कि जिससे उसकी इंगितादि चेष्टाओं से परीक्षा कर लूंगी।
(गा. 967 से 978) भीमराजा बोले- हे पुत्री! तेरा झूठा स्वंयवर रचा कर दधिपर्ण राजा को बुलाने के लिए पुरूष को भेजूं। तेरा स्वंयवर सुनकर वह तुंरत ही यहाँ आएगा। क्योंकि वह तेरे पर लुब्ध था और तूने नल का वरण कर लिया। उस दधिपर्ण के साथ कुब्ज भी आएगा क्योंकि यह यदि नलराजा होंगे तो तुझे दूसरे वर को देने का सुनकर वह सहन नहीं कर सकेगा। फिर नल अश्व के हृदय के विशेषज्ञ हैं, इससे यदि वह कुबडा नल होगा तो रथ को हाँकते उस रथ के अश्व से ही वह पहचाना जा सकेगा। क्योंकि जब वह रथ चलाता है, तब उससे प्रेरित अश्व मानो पवन ही अश्वमूर्ति हो गए हों, वैसे पवनवेगी हो जाते हैं। साथ उनको आने का दिन भी नजदीक का ही दूंगा ताकि नल यहाँ शीघ्र ही आवें क्योंकि कोई दूसरा साधारण व्यक्ति भी स्त्री का पराभव सहन नहीं करता, तो नल राजा कैसे सहन कर सकते हैं।
(गा. 979 से 984)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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