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________________ के तुल्य दिखता था। अग्निज्वाला जैसे जिह्वा से सर्प सा दारूण और विकराल उसका मुख था। कर्तिका जैसे भयंकर उसके हाथ थे । ताल जैसे लंबे और कृश उसके चरण थे। मानो काजल से ही गाढा हो वैसा अमावस्या के अंधकार जैसा श्यामवर्णा था। उस विकराल सिंह का चर्म ओढा हुआ था। वह राक्षस वैदर्भी को देखकर बोला- क्षुधा से कृश उदरवाले मुझ को बहुत दिन से आज अच्छा भक्ष्य प्राप्त हुआ है। अब मैं शीघ्र ही तेरा भक्षण करूँगा। यह सुनकर नलपनि भयभीत हो गई फिर भी धैर्य रखकर बोली- अरे राक्षस । प्रथम मेरे वचन सुन ले फिर तुझे जैसी रूचि हो वैसा करना । जो भी जन्मा है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होती है। (गा. 594 से 597) 1 परंतु जब तक वह कृतार्थ हुआ न हो तब तक उसे मृत्यु का भय है। परंतु मैं तो जन्म से लेकर परम अर्हत भक्त होने से कृतार्थ ही हूँ । अतः मुझे भय नहीं है। परंतु तू परस्त्री का स्पर्श मत करना यह भयानक पातक कृत्य है । करके तो तू सुखी होगा भी नहीं। हे मूढात्मा ! मेरे आक्रोश से तो तू हुआ न हुआ हो जाएगा अतः क्षणभर विचार करो । इस प्रकार दवदंती का धैर्य देखकर राक्षस खुश हो गया। तब उसने कहा- हे भद्रे ! मैं तुम पर संतुष्ट हुआ हूं, अतः कहो मैं तुम्हारा क्या उपकार करूँ ? वैदर्भी बोली- हे देवयोनि निशाचर! यदि तू संतुष्ट हुआ है तो मैं तुझको पूछती हूँ कि मेरे पति का मुझसे मिलन कब होगा ? (गा. 598 से 603) अवधि ज्ञान से जानकर वृक्ष राक्षस ने कहा हे यशस्विनी! जब प्रवास के दिन से बाहर वर्ष संपूर्ण होंगे तब पिता के घर रही तुमको तुम्हारा पति स्वेच्छा से आकर मिलेगा। अतः अभी तुम धीरज रखो । हे कल्याणी! तुम कहो तो मैं तुमको अर्द्ध निमेष में तुम्हारे पिता के यहाँ पहुँचा दूँ । किस कारण से इस मार्ग पर चलने का प्रयास करती हो? दवदंती बोली- हे भद्र! तुमने नलराजा के आगमन की बात कही उससे मैं कृतार्थ हुई हूँ। मैं परपुरूष के साथ जाती नहीं अतः जाओ तुम्हारा कल्याण हो । पश्चात वह राक्षस अपना ज्योतिर्मय स्वरूप बताकर विद्युत की गति के समान तत्क्षण आकाश में उड़ गया। (गा. 604 से 607) अपने पति का वियोग बारह वर्ष तक का जानकर दवदंती ने सतीत्वरूप वृक्षों के पल्लव जैसा इस प्रकार का अभिग्रहण धारण किया। जब तक नल राजा त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 114
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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