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षह आदि मृग साधु नहु भंजीये ॥ १७८ ॥ मिलें उवसग्ग मंदर जिम धीरूए, हर्ष शोकादि बुद्धि जेम गंभीरूए । ताप परिणाम विण शशि जिम सोमए, करें प्रकाश दिनकर जिम व्योमए ॥ १७९ ॥ कनक जिम निरमळ सुंदर रूवए, पुढवि जिम दुह सुहे सरिस सरूवए । सहुत हुतवह जिम तेज देदीपए, ज्ञान बलि करे प्रकाश बहु दीपए ॥ १८० ॥ निर्मलं नयन सुख करें आयंस ए, असह मन लेश्य मुनि उत्तम वंश ए । तेय भगवंतने नहीय प्रतिबंधए, द्रव्य क्षेत्रादिके नहीय संबंधए॥ १८१ ॥ द्रव्य सचिन अचित्तने मीसए, खेत्र ग्रामादिके नहीय जगीसए । काल समयादि ओसप्पिणिस्सप्पिणी, भाव कोहाइसु नहीय आशा घणी ॥ १८२ ॥ नगर पण रात एक रात गामें रहें, वरिषा टाली प्रतिमाधर निरवहें । थेर कप्पोय नव कलपीयें विवहरें, एक चउमासनो आठ एक एक करे ॥ १८३ ॥ वासीय चंदन सम मन तमु रहें, सत्रुने मित्र सम चित्त ते निरवहें । लेष्टुने कंचण लेखवे सम करी, दुख्खने सुख्ख सम वृत्ति हियडे धरी ॥१८४ ॥ नहीय प्रतिबंध हिंसादिन रोइए; रमतने हेत हस्त्यादिक नपोईयें । वस्त्र पडकूल अथ वळीय कप्पासियें, उग्रहोपग्रहे नहिय मन वासियें ॥ १८५ ॥ उग्रह वसति वाजोटने पाटियां, उपग्रहं बहुविधे दंदक आदियां । ममत तमु नहिय इच्छा तणा राजिया, विचरे ए तिहां तिहां गारव वजिया ॥१८६॥ सर्व सिद्धांतना पारगा ते कह्या, पवित्र अंतरंग मन सुद्धिथी में लह्या। वायु जिम