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॥४२॥ मल्याचल, चंदन जिहांरे लो, तपति छ मासी जायरे । बा० ॥ खल सुपति तिण देशनोरेलो, रमणि रही लपटायरे । बा०॥ वर० ॥ ४३ ॥लाट कर्णाटतणो धणीरे लो, गौड चौड, नेपालरे । बा०॥ लाड कुंकण रुछ देशनारेलो, बेठा ए भूपालरे, बाईजी । व० ॥ ४४ ॥ इंद्र शोभा जिणे अवगणीरे लो, सागोरनो ए नाथरे ॥ बा० ॥ रूप कला गुण आगलोरे लो,अशोक कुमर वलि साथरे ॥बा०॥०॥४५ रोहिणी रूप निहाळीयोरें लो, होइ रही लय लीनरे ।। बा० कर्ता दिसे छे सहीरे लो, अशोक कुमर आधीनरे ।। बा० ॥ । ब० ॥४६॥ जिम गयवर रेवा नदीरे लो, चूनीने बलि हेमरे ।। वा० ॥ जिम चकोरने चन्द्रमारे लो, कुमरने कुमरी तेमरे ।। बा० ॥ व० ॥४७॥ चमक लोह जिम आविने लो, कंठ ठवे वरमालरे ॥ बा०॥ हरषे हियडो कुंवरनोरे लो, देखी अति सुकुमाळरे ॥ बा०॥ व०॥४८॥ हाले) हूई ए सातमीरे लो, कुमरी हरष अपाररे । बा०॥ कर्मसिंह करमें करीरे लो, सुख संपति श्रीकाररे ॥ बा०॥ व०॥४९॥
-दूहाःविद अनोपम देखीने, पुगी सब जन खांति; मघवा महाराजा हवे, भोजन नवली भांति ॥५०॥ अवर सहु राजा प्रते, वस्त्रदान सनमान । संतोषी संप्रेडिया, सघळाई राजान ॥५१॥ हवे राजा वीवाहतणो, मोटो करे मंडाण। खरचे धन उत्सुक थई, अवसर जाणे जाण ॥५२॥