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( ढाल-संभलि प्राणिया पह विचार-पदेशी )
ज्ञानावरण प्रथम नृपजाणो,पटसम तेहनो रूप बखाणो॥१॥ संभलो भविजन कर्म विचार, ओलखि लेज्यो आतमसार ॥संभ०॥२॥ पांचमुभट एहना छे जेह, निजनिज फल देखाडे तेह ॥ संभ०॥३॥ पांचेनी थिति सागर त्रीस, कोडाकोडि कहे मादीस ॥ संभ०॥४॥ दजो छे प्रतिहारसमाणो, नाम दरसनारणकहाणो ॥ संभ० ॥५॥ चेतनदरसतणो अंतराय, करे कहे इम श्रीजिनराय ।। संभ० ॥६॥ नवमभटे परवरीयोराय, जीस कोडाकोडि थितिकवाय।।संभ०॥७॥प्रकृति असाता सातादोय, अदनीकर्म इणीपर होय ॥ संभ० ॥ ८ ॥ मधु खरडित जेहवी
वडगधार, तेह सरिस वेदनी सविचार ।। संभ० ॥९॥ श्रीस 'कोटाकोडि सागर मान, स्थिति एहनी जाणे मतिमान
॥ संभ०॥१०॥ भायुकरम चिहुं भेद्रे जाणो, गति नामें करि तेह वखांणो ॥ संभ० ॥११॥ तारक सुर सागर तेत्रीस, गुरु स्थिति जाणो विश्वावीस । संभ०॥१२॥ तिरिनर, तीन पल्योपम सार, आयु गुरु स्थिति ए निरधार ।। संभ० ॥ १३ ॥ इडिसरिसो ए जाणो जोध, मुक्ति गमननो करे निरोध ॥ संभ०॥१४॥ नाम करम चित्रकार समाणो, नीन अधिकसत सभटवखाणो ॥ संभ० ॥१५॥ एहतणां संखेपे नाम, जांणि सलूझो चेतनराम ॥ संभ०॥१६॥ नारक तिरि तर देव विचार, इगबितिचर पंचेंद्रीसार ॥ संभ० ॥१७॥ पनरबंधन वलि पंच सरीर, संघातन संघयण सधीर ॥संभ०॥१८॥डसंठाण वरण