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प्रगटरूपे जणावी आपेल छे. आ ग्रन्थकारे बीजा पण ग्रन्थ रत्नो रच्या हशे ? पण ते मने उपलब्ध थया नथी, किंतु तेमना रचेला स्तवन, सज्झाय, गुरुपद महोत्सवगुणभास विगेरे जोवामां आवे छे. तेमनी जन्मभूमी विगेरेनो ईतीहास जाणवामां आवेल नथी. आ रासनी रचना करनार मुनिराज चारित्रपात्र आत्मार्थी हता.
२ - श्रीचारप्रत्येकबुद्धचरित्र - रास. पृष्ट ४३ थी ७८ शुधीमां छे. तेना कर्ता श्रीमन्नागपुरीय बृहत्तपागच्छीय युग(मवर क्रियाउद्धारकरी शुद्ध मुनिपणुं प्रवर्तावनार सिथिलाचारने दूर करनार श्रीजैन सिद्धान्तानुसारक्रिया मार्गनो निखालश हृदये उपदेश करनार बालब्रह्मचारी परमपूज्य श्रीपार्श्व चंद्र सूरीश्वरजी महाराजना शिष्य शास्त्रविशारद महर्षि श्रीब्रह्ममुनि छे, तेमणे विक्रम संवत १५९४ वर्षे आ रासनी रचना करी छे. श्री उत्तराध्ययन सूत्र तथा वृत्तिथी आ चोपाई ) रासने रच्यो छे / आचारे प्रत्येकबुद्ध समान आयुष्यवाला 'साथे दीक्षा तथा साथै केवलज्ञान तथा साथे मोक्ष गएला छे. गुजराती भाषामा काव्यबंध आ चोपाईनी रचना करेलछे. कविता सरल सादी अने भावाही छे. एमणे ग्रन्थो घणा कर्या छे. जेवा के - १ - श्रीजंबूद्वीपप्रज्ञप्तिवृत्तिः, १ - दशाश्रुतस्कंध सूत्रवृत्तिः, ३ - श्रीपाक्षिकसूत्रवृत्तिः, ४ - प्रतिमास्थापनप्रबंध, ५ - श्री सुमति नागिनो रास, ६ - सैद्धांतिक विचार, ७ - चोपर्वीव्याख्या, ८ सुधर्मागच्छ परीक्षा, ९- उत्तराध्ययन सूत्रनी स्वाध्यायो १०