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________________ मिथ्यात्वि क्रियाऽधिकारः। - मेटणहारी छै । पुण्य रूप शीतलताई नी करणहारी छै । ते करणो आज्ञा माहि छै तेहनी आज्ञा साधु प्रत्यक्ष देवे छै । जे मिथ्यादृष्टि साधु ने पूछे हूं सुपात्र दान देवू, शील पालू, वेला तेलादिक तप करू। जब साधु तेहने आज्ञा देवे के नहीं, जो आज्ञा देवे तो ते करणी आज्ञा माहींज थई। अने जे आज्ञा बाहिरे कहे. तेहने लेखे तो आज्ञा देणी हो नहीं । अशुद्ध आज्ञा वाहिरे हुवे तो ते करणी करावगी नहीं मुखसूं तो आज्ञा देवे छै जे तू शीलपाल म्हारी आज्ञा छै इम आज्ञा देवे छै। अनें वली इम पिण कहे ए करणी आज्ञा वाहिरे छै इम कहे ते आपरी भाषा रा आप अजाण छै जिम कोई कहे म्हारी माता बांझ छै ते सरीखा मूर्ख छै.! माहरी माता छै इम पिण कहे. अने वांझ पिण कहे, तिम आज्ञा पिण ते करणी री देवे, अने आज्ञा वाहिरे पिग कहे, ते महा मूर्ख जाणवा । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १८ बोल सम्पूर्ण। बली शुद्ध करणोनी आज्ञा तो ठाम २ सूत्रमें चाली छ। 'रायपसेणी" सूत्रमें सूर्याभ ना. "अभिओगिया" देवता भगवान्ने बांद्या तिवारे भगवान् आज्ञा दीधी छै ते सूत्रपाठ कहे छ। जेणेव आमलकप्याए णयरी जेणेव अंवसालवणे चेइये जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ २ ता समणं भगवं महावीरं तिवखुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेति २ त्ता वंदइ नमंसह. २त्ता एवं वयासी. अम्हेणं भंते ! सूरियाभस्स देवस्स अभिप्रोगिया देवा देवाणुप्पियं वंदामो णमंस्सामो सकारेमो सम्माणेमो कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामो। देवाइ समणे भगवं महावीरे ते देवे एवं वयासी-पोराण
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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