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________________ -भ्रम विध्वंसनम् । - __ वली केइ ऊधो तर्क सूं पूछे। जे प्रथम गुगठाणे शील व्रत नोपजे के नहीं । तेहनें इम कहिणो-अव्रती सम्पग्दृष्टि त्याग बिना शील पाले तेहने शीलबत निपजे कि नहीं। जब कहै तेहनें तो व्रत निपजे नहीं, निर्जरा धर्म हुवे छै। तो जोवौनी जे अब्रती सम्यग्दृष्टिरे त्याग बिना शीलादिक पाल्यां व्रत निपजे नहीं तो मिथयात्वी रे ब्रत किम निपजे । जिम अव्रती सम्यग्दृष्टि रे शीलादिक थी घणी निर्जरा हुवे छ। तिम प्रथा गुण ठाणे पिण सुपात्र दान देवे. शील पाले. दयादिक भली करणी तूं निर्जरा हुवे छै । तिवारे कोइ कहै-जे चौथा गुणठाणा रोधणी शीलादिक पाले, प्राणाति पातादिक आश्रव टाले, एहवो किहां कह्यो छै। तेहनो उत्तर–श्री महावीर दीक्षा लियां पहिला बे वर्ष झाझरा ( अधिक) घरमें रह्या । पिण विरक्त पणे रह्या, काचो पाणी न भोगव्यो। पहy कह्यो ? ते पाठ लिखिये छ। अवि साहिये दुवेवासे सीतोदं अभोच्चा णिक्खन्ते एगन्तगएपिहि यच्चे से अहिन्नाय दंसणे सन्ते । ___(आचारांग श्रु० १ ० ६ गा० ११ ) अ० झाझरा. दु० वे वर्ष गृहवास में विषे. सो० काचो पाणी न पोधो. णि गृहवास छोड़ी ने. ए० तथा गृहवास थकां एकत्व पणो भावतां. पि० क्रोधादिक थकी उपशान्त तथा. से० ते तीर्थकर अ० जाण्यो छै. त० ते ज्ञान सम्यक ते करी पोताना आत्माने भावे. इन्द्रिय नो इन्द्रिय करी प्रशान्त । ... . अथ अठे कह्यो भगवान् श्री महावीर स्वामी दीक्षा लियां पहिला माझा ( अधिक ) दो बर्ष ताइ विरक्त पणे रह्या। सचित्त पाणी भोगव्यो नहीं तो त्यारे व्रत तो हुवे नहीं । पिण निर्जरा शुद्ध निर्मल छै । तो जोवोनी चौथे गुणठाणे पिण व्रत नहीं तो प्रथम गुणठाणे व्रत किम हुवे । डाहा हुवे तो विचारि जोईजो। इति १० बोल सम्पूर्ण।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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