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________________ भ्रम विध्वंसनम् । धम्मो मंगल मुक्किट्ठ अहिंसा संजमो तवो। देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो ॥ १ ॥ (दशवकालिक अध्ययन १ गाथा १) इहां धर्म मंगलीक उत्कृष्ट कह्यो, ते अहिंसा ने संयम ने अने तपने धर्म कयो छै। संयम ते संवर धर्म, अने तप ते निर्जा धर्म है। अने त्याग विना जीवरी दया पाले ते अहिंसा धर्म छ। अने जीव हणवारा त्याग ते संयम पिण कहीजे, अने अहिंसा पिण कहीजै। अहिंसा तिहां तो संयम नी भजना छै। अने संगम तिहां अहिंसा नी नियमा छ । ए अहिंसा धर्म अने तप धर्म तो पहिला चार गुण ठाणा (गुणस्थान) पिण पावे छै। पहिले गुणठाणे अनेक सुलभ बोधी जीवां सुपात्र दान देइ जीवदया. तपस्या. शीलादिक. भली उत्तम करणी. शुभ योग, शुभ लेश्या निरवद्य घ्यापार थी परीतसंसार कियो छ । ते करणी शुद्ध आज्ञा मांहिली छै। ते करणी रेलेखे देश थकी मोक्ष मार्ग नो आराधक को छै ते पाठ लिखिये छै। अहं पुण गोयमा! एव माइक्खामि जाव परूवेमि. एवं खलु मए चत्तारि पुरिस जाया पणत्ता। तंजहा-सील संपणणे नामं एगे नो सुय संपरणे. सुयसंपराणे नामं एगे नो सील संपते. एगे सील संपरोवि सुय संपगो वि. एगे नो सील संपण्णो नो सुय संपरागो. ॥ १ ॥ तत्थणं जे से पढ़मे पुरिस जाए सेणं पुरिस सीलवं अनुय उवरए अविण्णायधम्मे एलणं गोयमा ! मए पुरिसे देसाराहए पराणत्ते ॥२॥ __ तत्थणं जे से दोच्चे पुरिस जाए सेणं पुरिसे असीलवं सुतवं अरणवरए विणणाय धम्मे एसणं गोयमा ! मए पुरिसे देसविराहए पगाते ॥३॥
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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