________________
भ्रम विध्वंसनम् ।
नो कप्पइ निग्गंथी अवंगु दुवारिए उवस्सए वत्थए, एगं पत्थारं अंतोकिच्चा, एगं पत्थारं बाहिं किच्चा ओहाडिय चल मिलियागंसि एवराहं कप्पइ वत्थए ॥ १४ ॥ कप्पइ निग्गंथा अवगुंय दुवारिए उवस्सए वत्थए ॥
१५ ॥
( वृहत्कल्प उ० १ )
४६२
नो० नहीं. क० कल्पे नि० साध्वी नें. अ० किमाड़ रहित. उ० उपाश्रय ने विषे. ६० रहिवो. (कदाचित रहिवो पड़ े तो ) ए० एक. प० पड़दो श्र० माहि ने जठे सूवे बठे. कि० वांधी ने. ए० एक प० पड़दो. बा० वाहिर. कि० वांधी ने चि० पछेवड़ी प्रमुख बांधी ने ब्रह्मचर्य यत्र निमित्ते. उ० उपाश्रय में. व० रहिवो. क० कल्पे छै नि० साधु ने अ० किमाड़ रहित. पिया उ० उपाश्रय ने विषे. व० रहियो ।
1
अथ अठे इम कह्यो । साध्वी ने उघाड़े वारणे रहणो नहीं । किमाड़ न हुवै तो चिलमिली (पछेवड़ी) बांधी ने रहिणो । पिण उघाड़े वारणे रहिवो न कल्पे तिणरो ए परमार्थ शीलादिक राखवा निमित्ते किमाड़ जड़नों । पिण शीलादिक कारण विना जड़नों उघाड़नों नहीं । अनें साधु ने तो उघाड़े द्वारे इज रहिवो कल्पे इम कह्यो । धर्मं सिंह कृत भगवती ना टब्बा में १३ आंतरा मे आठमा आंतरा नों अर्थ इम कियो ।,, मग्गंतरे हि” कहितां साधु साध्वी ने ५ महाव्रत सरीखा छते साधुनें ३ पछेवड़ी अनें साध्वी नें ४ पछेवड़ी, तथा साधु तो किमाड़ देई न रहे । अनें साध्वी किमाड़ विना उघाड़े किमाड़ न सूबे । तो मार्गमांही एवड़ो स्यूँ फेर । उत्तरसाध्वी तो ४ पछेवड़ी अनें सकिमाड़ रहे ते स्त्री ना खोलिया माटे वीतराग नी आज्ञा ते मार्ग मुक्ति नों इज छै । धर्मसिंह कृत १३ आंतरा में आर्या ने किमाड़ जड़वो कह्यो । अनें साधु ने किमाड़ जडणी वर्ज्यो । ते भणी आवश्यक सूयगडाङ्ग आचाराङ्ग बृहत्कल्प आदि अनेक सूत्रां में साधु ने किमाड़ जड़वो उघाड़बो खुलासा वर्ज्या छतां जे द्रव्यलिङ्गो पेट भरा जिनागम ना रहस्य ना अजाण पोता नों मत थापवानें
1
I
1