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________________ भ्रम विध्वंसनम् । करी उपलिप्त न हुयो इसो पिया न बोले. जिया कारण आधा कर्मी प्रादिक आहार पिण सूत्र ने उपदेशे शुद्ध किसे ने निर्दोष जाणी जीमतो कर्मे न लिपाइ अथवा सूझतो आहार पिण शंका सहित जोमतो कर्म करी लिपाह. इस्यो ते एकान्त वचन न बोलें। ए वि स्थानके करी. • व्यवहार न थी । बिहू स्थानके करी अनाचार जाणे. ४५० अथ इहां कह्यो - शुद्ध व्यवहार करी ने आधा कम्र्म्मा लियो निर्दोष जाणी नें तो पाप न लागे । तिम श्रावक पिण शुद्ध निर्दोष प्राशुक. एषणीक जाण ने अप्राशुक अनेवणीक दियो तेहनें पिण पाप न लागे । तथा भगवती श० ८८ उ० ८ को वीतराग जोय २ चालै तेहथी कुक्कुटादिक ना अण्डादिक जीव हणीजे तेहनें पिण पाप न लागे । पुण्य नी क्रिया लागे शुद्ध उपयोग माटे । तथा आचाराङ्ग श्रु० १ अ० ४ उ०५ कह्यो जो कोई साधु ईर्याई चालतां जीव द्दणीजे तो तेहने पाप न लागे हणवारो कामी नहीं ते माटे । तिम श्रावक पिण शुक अनेषणीक दियो तेहनें पिण पाप न लागे । अभव्य पिण रहे चौथा व्रत से भागल पिण अजाण पणे भेलो रहे पिण· तेहनों शुद्ध व्यवहार जाणी अनेरा साधु वांदे व्यावच करे । त्याँने पाप न लागे । अनें भभव्य तथा भागल ने जाण नें भेलो राखे तो दोष लागे, तिम श्रावक पिण शुद्ध व्यवहार करी अणजाण्ये अशुद्ध अशनादिक देवे साधु ने पाप न लागे । अनें जाण नें अशुद्ध दियां पाप लागे छै । जोइजो । शुद्ध व्यवहार करी अप्राअजाण पणे तो साधु भेलो तो ते श्रावक ने पिण हा हुवे तो विचारि इति ६ बोल सम्पूर्ण | तिवारे कोई कहे - अल्प पाप कह्यो ते अल्प शब्द थोड़ो अर्थ वाची कहि पण अल्प अभाव वाची किहां कह्यो छै, अल्प कहितां नथी पहनूं पाठ कहांई को हुवे तो बतावो इम कहे तेहनों उत्तर-पाठे करी लिखिये छै । ततेां अहं गोयमा ! अणया कयायी पढम सरद कालसमयंसि अप्पबुद्धि कार्यसि गोसाले गं मंखलिपुत्ते
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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