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________________ अथ उच्चार पासवणाऽधिकारः । केतला एक पाखंडी कहे - साधु न गृहस्थ देखतां मात्रो परठणो नहीं । अते. कहे - जे सूत्र निशीथ उ० १५ कह्यो “ बाजार में उच्चार. ( बड़ी नीति ) पासवण ( छोटी नीति ) परठ्यां चौमासी प्रायश्चित्त आवे" ते माटे गृहस्थ देखतां मात्र परठणो नहीं । इम कहे, तेहनों उत्तर ए उच्चार पासवण परठण रो बर्ज्या ते उच्चार आश्री बज्यों छै । पासवण तो उच्चार रे सहचर हुवे ते माटे भेलो शब्द कह्यो छै । ते पाठ लिखिये छै । जे भिक्खू 'उच्चार पासवणं परिवेत्ता न पुच्छेइ न पुच्छन्तं वा साइज्जइ ॥ १६९ ॥ (निशीथ उ०४ ) जे० जे कोई साधु साध्वी. उ० वड़ी नीति पा० लघु नीति प० परिठवी नें. म० नहीं वस्त्रे करी. पू० पूछे. न० नहीं. वस्त्रे करी. पू० पूछता में अनुमोदे तो पूर्ववत् प्रायश्चित्त. अथ इहां कह्यो - उच्चार ( बड़ी नीति ) पासवण ( छोटी नीति ) परिठवी (करी) नें वस्त्रे करी न पूंछे तो प्रायश्चित्त कह्यो । तो पासवण रो कांई पूंछे. ए तो उच्चार नों पूंछणो कह्यो छै उच्चार करतां पासवण हुवे ते माटे बेहूं भेला कला छै । परं पूछे ते उच्चार नें, पासवण नें पूंछे नहीं । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । । इति १ बोल सम्पूर्ण । तथा तिणहिज उद्दे श्ये एहवा पाठ कह्या छै । ते लिखिये छै ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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