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________________ एकाकिसावधिकारः। ४२३ मोक्ष पामवानों. ए० भागलि कहिल्ये. म० ते मार्ग गु० गुरु शामादिके के करी गुण बड़ा तेहनी. से० सेवा करवी. वि० विवर्जना करवी पासत्यादिक अज्ञानियानी दु० दूर थको स०स्वाध्याय एकान्त स्थान के नि० करवी मु० सूब अन सूत्रार्थ साचे मने करी चिन्तविवो एकाग्र चित्त पणे. अथ भठे कह्यो-ज्ञान. दर्शन. चारित्र. ए मोक्ष ना उपाय कह्या । ते शानादिक पामवा नों मार्ग गुरु बृद्ध ते ज्ञान बृद्ध दीक्षा बृद्ध साधु नी सेवा करतो शुद्ध आहार शिष्य वांछतो कह्यो। ए गुरु वृद्ध घणा साधु नी समुदाय रूप गच्छ छै ते माहे रह्यो थको ज निपुण सखायो वांछणो कह्यो। पिण गच्छ बाहिरे निकलबो न कह्यो। इति ६ बोल सम्पूर्ण । तथा राग द्वेष ने मभावे एकलो तो घणे ठामे कह्यो ते केतला एक पाठ लिखिये है। माय चंडालियं कासी बहुयं माल आलवे । कालेणय अहिजित्ता तेश्रो माइज एगो ॥१०॥ । उत्तराध्ययन अ०१) मा० कदाचित क्रोधादिक ने वशे हिसादिक घोर कार्य न करिवो. बघण २ स्त्री कथादिक न बोलवो. का प्रथम पौरसी प्रमुखे सिद्धान्त भणी ने गुरु समीपे तिवारे पछे धर्म ध्याना. दिक ध्यावो. ए० एकलो राग द्वेष रहिन छतो. अथ अठे पिण एकलो ध्यान ध्यावे एगुरां समीपे ते पिण एकालो कह्यो ते भाव थी राग द्वेष ने भभावे एकलो पहवो अर्थ कियो। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १० बोल सम्पूर्ण ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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