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________________ ( ब ) २ बोल पृष्ठ ३४६ से ३४६ तक । जिन भाशा सहित आलोची करतां विपरीत थयो ते पिण शुद्ध छै ( आ० अ० ५० ५ ) ३ बोल नदी उतरवारो कल्प (वृहत्कल्प उ०४ ) ४ बोल पृष्ठ ३५२ से ३५३ तक । नदी उतरवारी आज्ञा ( आ० श्रु० २ अ० ३ उ० ५ ) ५ . बोल पृष्ठ ३५३ से ३५४ तक । साध्वी पाणी में डूबती नें साधु वाहिर काढे ( वृ० क० उ० ६ ) ६ बोल पृष्ठ ३५४ से ३५५ तक । साधु रो दिशा भनें स्वाध्याय रो कल्प ( वृ० क० उ० १ ) इति श्रीजयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने श्राज्ञाऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । पृष्ठ ३५० से ३५२ तक । शीतल आहाराऽधिकारः । १ बोल पृष्ठ ३५६ से ३५६ तक । ठण्डी आहार लेणो को ( उत्त० अ० ८गा० १२ ) २ बोल पृष्ठ ३५६ से ३५७ तक । वली ठण्डी आहार लेणो कह्यो ( आचा० ० १ अ० उ०४ ) ३ बोल पृष्ठ ३५७ से ३५६ तक । नगर से अभिग्रह ( अनु० उ० ) ४ बोल शीतल आहार लेणो कह्यो ( प्र० व्या० अ० १० ) इति श्रीजयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने शीतलाहाराऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता । पृष्ठ ३५६ से ३६० तक ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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