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________________ एकाकिसाध्यधिकारः । तथा ठाणाङ्ग ठा० ८ कह्यो । ते पाठ लिखिये छै । अहिं ठाणेहिं सम्पन्ने अणगारे अरिहइ एगल्ल बिहार पडिमं उवसंपजित्ताणं वित्तिय तं सच्चे पुरिसाए मेहावी पुरिसजाए सत्तिमं पाहिगरणे धिइमं वीरिय सड्डी पुरिस जाए, बहुस्सुए पुरिसजाए संपन्ने ॥ १ ॥ (ठाणांग ठा० ८ ) ૪૨૭ ० आठ ठा० स्थानक गुण विशेष करी संयुक्त. अ० अणगार ग्रह योग्य थाइ ए एकाकी नूं. वि० ग्रामादिक में बिषे जावू. ते प० प्रतिमा अभिग्रह ते एकाकी विहार प्रतिम अथवा जिन कल्पिक ने प्रतिमा अथवा मासादिक भिक्खु नी प्रतिमा पडिवजी नें. वि० ग्रामादिक ने विषे विचरा योग्य थाइं तें कहे है. श्रद्धा तत्व श्रद्धवो अथवा अनुष्टान में विषे अभिलाष ते सहित सं० सर्व इन्द्रादिक पिण चाली न सके सम्यक्त्वं चोर थकी, पुरुष जाति ते पुरुष प्रकार ए अर्थ. स० सत्यवादी प्रतिज्ञा शूर पणा थकी मेहावी श्रुत ग्रहवानी शक्ति सहित. मर्यादावर्त्ती एहिज भणी. व० सूत्र अर्थ थको आगम झाझो छै जेहनें जवम्य तो नवमा पूर्व नी त्रीजी बस्तु नों जाण उत्कृष्टो असम्पूर्ण दर्श पूर्वघर स० समर्थ ५ विधे तुलना कोधी तप श्रुत. एकल पणू सत्वें करी नें शरीर नी समर्थाई करी जिन कल्पी ने ए ५ प्रकार नी तुल्यता करवी. अ० कलहकारी नहीं चित्तना स्वास्थ पणा सहित अरति रति अनुलोम प्रतिलोम उपसर्ग नूं सहणहार अधिक उत्साह सहित इहां जे देहला ४ शब्द ने पुरुष जाति शब्द मैत्री. पण कुरला चौकडाने विषे . तेह भगी इहां पिण जाया. अथ इहां आठ गुणा सहित नें एकल पड़िमा योग्य कह्यो ते आठ गुण, मेधावी ते मर्यादावान् "बहुतीजी वत्थु न जाण. शक्तिएआठ गुणा में नवमी पूर्व श्रद्धा में सैंठो देव . डिगायो डिगे नहीं. सत्यवादी. प" नो अर्थ इम कह्यो - जे जघन्य नवमा पूर्व नी चान्. कलहकारी नहीं, धैर्यवन्त उत्साह वीर्यवान् नी तीजी वत्थु ना जाण ने सकल पडिमा योग्य रहिवो कह्यो । ते माटे नवमा पूर्व तीजी वत्थु भण्याविना एकल फिरे ते जिन आज्ञा बाहिरे है । तिवारे कोई ६ गुणा नाणी ने गण धारणो कह्यो तिण में पिण "वहुस्सुरवा" पाठ को छै । ते माटे नवमा पूर्व नी तीजी वत्थु भण्या विना एकल पणो न तो नवमा पूर्व नी 43
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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