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________________ अथ एकाकिसाधुअधिकारः। केतला एक अज्ञानी कहे-कारण बिना पिण साधु ने एकलो बिचरणो कल्पे इम कहे ते सूत्र ना अजाण छै। कारण बिना एकलो फिरे तिण ने तो भगवन्त सूत्र में ठाम २ निषेध्यो छै। तथा व्यवहार उ० ६ कह्यो ते पाठ लिखिये छै । से गामंसिवा जाव संनिवेसंसि वा अभिगिणवगडाए, अभिगिण दुवाराए अभि णिक्खमण पेसवाए नोकप्पति बहुसुयस्स वभागमस्स एगाणिधस्स भिक्खुस्सवथए. किमं गपुण अप्पसुयस्स अप्पागमस्स ॥१४॥ ( व्यवहार उ०६ संत ग्राम ने विष. जा० यावत. सं० सन्निवेश सराय प्रमुख ने विषे. अ० प्रत्येक कोट में वाड़ी वरंडो हुवे. अ० जुना २ वारणाहुइ प्रत्येक जुदा २ निकलवा ना मार्ग है. ५० प्रवेश करवा मा मार्ग है. तिहां. नोन कल्पे. ब. बहुश्रुति ने. व० घणा पागम ना जाण . ए० एकाकी पणे. भि० साधु ने व० रहिवो. जो बहुश्रुति ने एकलो रहिवो. तो. कि. किस्यूं कहिवो. पुरु वली अल्प आगम ना जाण. भि० साधु ने जे ग्रामादिके घणा जुदा २ वारणा जुदा २ ठाम होय घणा फेर मा होय. तिहां एककी बहुश्रुति थको पिण पाप अनाचार सेवा लहे अने जो एक ठां हुई तो बहुश्रुति तिहां बसतो थको पाप अनाचार लजाइ न सेवो सके. अथ इहां कह्यो-जे प्रामादिक ना घणा निकाल पैसार हुवे। तिहां बहुश्रुति घणा आगम ना जाण ने पिण एकाकी पणे न कल्पे तो किस्यूं कहिवो अल्प आगम ना जाण ने इहां तो प्रत्यक्ष एकलो रहिवो बज्यो छै। ते माटे एकलो रहे तेहनें साधु किम कहिये । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १ बोल सम्पूर्ण।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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