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________________ निम्रन्थ निदाऽधिकारः। ४०७ - - - - - - Vvvvvwan अथ इहां कह्यो-पाणी ना तीरे ऊभो रहिवो. वैसवो. मिदादि लेवी स्वाध्याय ध्यानादिक न कल्पे। ए सर्व पाणी ना तीरे बा। पिण और जगां ए बोल बा नहीं। जिम अनेरी जगां स्वाध्याय. ध्यान. अशनादिक करणा कल्पे। तिम अनेरी जगां निदा पिण लेवी कल्पे। ए तो सर्व बोलां री जिन आज्ञा छ, तिण में प्रमाद नहीं। जिम स्वाध्याय. ध्यान. अशनादिक में पाप नहीं तो निदा में पाप किम कहिए। ए सर्ब बोलां री आज्ञा छै ते माटे तथा बृहत्कल्प उ० ३ कह्यो। न कल्पे साधु ने साध्वी ने स्थानक विकट वेलाई स्वाध्यायादिक करवी. निदा लेवी. इम कह्यो। पिण अनेरे ठामे स्वाध्याय निदादिक वर्जी नथी। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति ५ बोल सम्पूर्ण। तथा वृहत्कल्प उ० ३ कह्यो ते पाठ लिखिये छै । नो कप्पइ निगंथाणं वा निग्गंथीणं वा अंतरगिर्हसि आसइत्तएवा चिट्टित्तएवा निसीइत्तएवा तुयहित्तएवा निदाइत्तएवा पयलाइत्तएबा असणंवा पाणंवा खाइमंवा साइमंवा आहार माहारित्तए. उच्चारंवा पासवणंवा खेलंवा सिंघाणं वा परिद्ववेत्तए सज्झायंवा करेत्तए. झाणंवा झाइत्तए. काउसग्गंवा करित्तए ठाणं वा ठाइत्तए अहपुण एवं जाणेजा जराजुगणे वाहिए. तवस्सी दुब्बले किलं ते मुच्छेजवा पवडेजवा एवं से कप्पइ अंतरागिहंसि आसइत्तएवा जाव ठाणंवा ठाइत्तए ॥ २२॥ (बृहत्कल्प उ०३)
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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