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भ्रम विध्वंसनम् ।
किम. भ० भगवन् ! जी जीव असाता वेदनी कर्म उपजावे. गो० गोतम ! ५० पर ने दःख करी. प० परने शोक करी. १० पर ने झुरावे करी. प० परने अश्रुपात करावे करी. प. परने पीटण करी पर ने परितापना उपजावे करी. व.घया प्राणी ने यावत. स. सत्व ने दुःख उपजावे करी. सोशोक उपजाये करी. जीव ने परिताप ना उपजावे करी. ए. इम निश्चय करी ने गो गोतम! जीव असाता बंदनी कर्म उपजावे छै. ए. इमज नारकी ने पिण वावत वैमानिक लगे.
अथ इहां कह्यो-साता वेदनी पुण्य छै ते प्राणी नी अनुकम्पा करी. भूत नी अनुकम्पा करी. जीव नी सत्व नी अनुकम्पा करी. घणा प्राणी भूत. जीव सत्व ने दुःख न देवे करी. इत्यादिक निरवद्य करणी सूं नीपजे छै। ते निरवद्य करणी आज्ञा माहिली इज छै। अनें असाता वेदनी कही ते पर ने दुःख देवे करी. इत्या. दिक सावध करणी सूं नीपजे छै। ते आज्ञा वाहिर जाणवी। ते माटे पुण्य नी करणी आज्ञा माहिली छै। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो।
इति १० बोल सम्पूर्ण।
वली आठों इ कम बंधवा री करणी रे अधिकारे एहवा पाठ छ। ते पाठ लिखिये छै ।
कम्मा शरीरप्पभोग बंधेणं भंते ! कइविहे पणणते गोयमा ! अट्ट विहे पण त्ते तं जहा-नाणा वणिज कम्मा शरीरप्पभोग बंधे जाव, अंतराइयं कम्मा शरीरणोग बंधे। णाणा वरणिज कममा सरीर प्पओग बंधे णं भंते: कस्स कम्मरस उदए गोयमा ! नाण पडिगोययाए नापण निराह वगयाए नाणंनरारणं नाणपदोसेणं णाणच्चासाय एणं नाण विसंवादणा जोगेणं नाणावरणिज्ज कममा सरीरप्पनोग