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________________ भ्रम विध्वंसनम् । श्राराधना ते गुणग्राम करवो पत्र प्रवचन सु० श्रुत ज्ञान सिद्धान्त नों बखायवो. गु० धर्मोपदेश गुरु नों विनय करे. थि० स्थविरां नों विनय करे. बहुश्रुति घणा श्रागम नों भानहार. एक २ अपेक्षाय करी ने जाणवो. त० तपस्वी एक उपवास आदि देई घणा तप सहित साधु तेहनी सेवा भक्ति ० अरिहन्त सिद्ध. प्रवचन गुरु. स्थविर. बहुश्रुति तपस्वी. ए सात पदावत्सलता पणे. भक्ति करी ने अने जे अनुरागी छतां ज्ञान नों उपयोग हुन्तो तीर्थ कर कर्म बांधे. दं० दर्शन ते सम्यक्त्व निर्मली पालतो, ज्ञान नों विनय भा० आवश्यक नों करवो कम करो fro निरतिचार पणे करिये. सी० मूल गुण उत्तर गुण नें निरतिचार पालतो थको तीर्थकर नाम कर्म बांधे. ख० क्षीणलवादिक काल ने विषे सम्वेग भाव ना ध्यान रा सेवा थको बंध. त० तप एक उपवासादिक. नप सूं रक्त पणा करी. चि० साधु ने शुद्ध दान देई नं. ० १० विध व्यावच करतो थको गु० गुर्वादिक ना कार्य करके गुरु ने सन्तोष उपजात्रे करी में तीर्थ. कर नाम गोत्र बांधे. अ० अपूर्व ज्ञान भणतो थको जीव तीर्थंकर नाम गोत्र बांधे. सु० सूत्र ना भक्ति सिद्धान्त नी भक्ति करतो थको तीर्थंकर नाम कर्म बांधे प० यथाशक्ति साधु मार्ग नें देखावेकरी. प्र.चन नी प्रभावना तीर्थकर ना मार्ग ने दीपावे करी. ए तीर्थकर पणा ना कारण थकी २० भेदी बंधतो को ३८२ अथ अठे वीसुंइ वोलां नो विचार कर. लेवो । तीर्थङ्कर नाम कर्म ए पुण्य छै । एपिण शुभ योग प्रवर्त्ततां बंधे छै । ए वीसुंइ वोल सेवण री भगवन्त नी आज्ञा है । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो । इति ६ बोल सम्पूर्ण । तथा विपाक सूत्र में सुमुख गाथा पति साधु ने दान देई प्रति संसार करी मनुष्य नों आयुषो बांध्यो को छै । करणी आज्ञा महिली छै । इम दसुंइ जणा सुपात्रदान थी प्रति संसार कियो. अनें मनुष्य नों आयुवो वांध्यो. ते करणी निरव छै । सावध करणी थी पुण्य बंधे नहीं । तथा भगवती श० ७ उ० ६ प्राण. भूत. जीव. सत्व. नें दुःख न दियां साता वेद नी रो बन्ध कह्यो । ते पाठ : लिखिये छै ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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