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________________ Name अथ निरवद्य क्रियाधिकारः। केतला एक अजाण आज्ञा वाहिरली करणी थो पुण्य बंधतो कहे। ते सूत्र ना जाणणहार नहीं। भगवन्त तो ठाम २ अज्ञा माहिली करणी थी पुण्य बंधतो कह्यो। ते निर्जरा री करणी करतां नाम कर्म उदय थी शुभ योग प्रवर्ते तिहां इज पुण्य बंधे छ। ते करणी शुद्ध निरवद्य आज्ञा माहिली छै । पुण्य बंधे तिहां निर्जरा री नियमा छे। ते संक्षेप मात्र सूत्र पाठ लिखिये छै । कहणणं भंते ! जीवाणं कल्लाण कम्मा कज्जति कालोदाई! से जहा नामए केइ पुरिसे मागणं थाली पाप सुद्धं अहारस वंजणा उलं ओसह मिस्सं भोयणं भंज्जेजा तस्सणं भोयरस आबाए नो भदए भवइ तत्रोपच्छा परिणम माण २ सुरूवत्ताए सुवरणत्ताए जाव सुहत्ताए नो दुक्खत्ताए भुजो भुजो परिणमइ एवामेव कालोदाई ! जीवाणं पाणाइ वाय वेरमणे जाव परिगाह वेरमणे कोह विवेगे जाव मिच्छा दंसण सल्ल विवेगे तस्सणं आवाए नो भदए भवइ तोपच्छा परिणममाणे २ सुरूवत्ताए जाव नो दुक्खत्ताए भुजो २ परिणमइ. एवंखलु कालोदाई जीवाणं कमाण कम्मा जाव कज्जीत। (भगवती श. ७ उ०१०)
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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