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________________ ३६२ छै 1 भ्रम विध्वंसनम् । तथा व्यवहार उद्देश्य १० जे साधु सूत्र भणे तेहनी पिण मर्यादा कही ते पाठ लिखिये छै । तिवास परियाए समरणस्स निग्गंथरस कप्पति आयार कप्पे नाम अयणे उद्दिसित्तए वा चउवास परियाए समग ग्गिंथस कप्पति सुयगड णामं अगं उदिसित्तए वा । पंचवास परियायस्स समरणस्स निग्गंथस्स कव्पति दसाकम्प - ववहार नामं अभय उद्दिसित्तएवा । अदुवास परियागस्स समरणस्स निम्गंथरस कप्पति ठाण समवाए णामं अङ्ग उद्दिसित्तए । दसवास परियागस्स समराइस ग्रिस कम्पति विवाहे नाम प्रगे उद्दिसित्तए । ( व्यवहार- १० उ० ति० ३ वपनी प्रब्रज्या ना धणी नें. स० श्रमण नि० निर्ग्रन्थने प्रा० श्राचार, कल्प नाम. श्र० अध्ययन ॐ भगवो च० ४ वर्ष नी प्रब्रज्या ना धणी नें स० श्रमण निः निर्ग्रन्थ ने. स० श्रमण नि० निर्ग्रन्थ ने कर कल्पे. सु० सूयगडाङ्ग उ० भगवो पं० ५ वर्ष नी प्रब्रज्या नाणी. स० श्रमण निः निर्ग्रन्थ ने द० दशाश्रुत स्कन्ध वृहत्कल्प. व० व्यवहार नामे अध्ययन उ० भावो. अ० आठ वर्ष नी प्रब्रज्या ना घणो ने स० श्रमण वि० नियंन्थ में क० कल्पे टा०ठाणांग अने. समवायाङ्ग, उ० भावो १० वर्ष नी प्रब्रज्या ना धणी ने स श्रमण. नि० निर्ग्रन्थ ने. क० कल्पे. वि० विवाह पति नाम अंग. उ० भगवो. अथ अठे को-तीन वर्ष दीक्षा लियां नें थया ते साधु ने आचार, कल्प ते निशीथ सूत्र भणवो कल्पे । च्यार वर्ष दीक्षा लियाँ साधु ने कल्पे सूयगडाङ्ग भणिवो । ५ वर्ष दीक्षा लियां साधु ने कल्पे दशाश्रुतस्कंध बृहत्कल्प. अनें ववहार सूत्र भगवो । अनें आठ वर्ष दीक्षा लियां साधु ने कल्पे ठाणाङ्ग सम वायाङ्ग भयो । १० वर्ष दीक्षा लिया साधु ने कल्पे भगवती सूत्र भणिवो । साधु ने पण मर्यादा सुत्र भणवा री कही । जे ३ वर्ष दीक्षा लियां पछे निशीथ
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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