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( त ) लेश्याऽधिकारः ।
१ बोल पृष्ठ २३७ से २३८ तक । भगवान् में कषाय कुशील नियण्ठो कह्यो छै ( भग० श० २५ उ० ६)
२ बोल पृष्ठ २३८ से २३६ तक। ६ लेश्या ( आव० अ० ४)
३ बोल पष्ठ २३६ से २४१ तक। मनपर्यवज्ञानी में ६ लेश्या ( पन्न० ५० १७ उ० ३)
४ बोल पृष्ठ २४१ से २४३ तक । लेश्या विशेष (भग० श० १ उ० १)
५ बोल पृष्ठ २४३ से २४८ तक। नारकी रा नव प्रश्न (भग० श०१ उ०२) मनुष्य ना नव प्रश्न ( भ० श० १७०२)
६ बोल पृष्ठ २४८ से २५० तक । कृष्ण लेशी मनुष्य रा ३ भेद ( पन्न०प०१७-२३० ) इति श्री जयाचार्य कृते भ्रमविध्वंसने लेश्याऽधिकारानुक्रमणिका समाप्ता ।
वैयारत्ति-अधिकारः।
१ बोल पष्ठ २५१ से २५२ तक। हरिकेशी मुनि ब्राह्मणा ने कह्यो ( उत्त० अ० १२ गा० ३२)
२ बोल पृष्ठ २५२ से २५३ तक । सूर्याभ नाटक पाइयो ते पिण भक्ति (राजप्र०)