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________________ आशाऽधिकारः। ३४६ उ०२ उदक लेप नों अर्थ नाभि प्रमाण जल अवगाहे ते लेप कहिये। एहवो अर्थ कियो छ । तथा ठाणाङ्ग ठा० ५ उ० २ टीका में उदक लेप नों अर्थ नाभि प्रमाण जल अवगाहे तेहनें लेप कह्यो। ते टीका में लिखिये छै । उदक लेपो नाभि प्रमाण जलावतरणम् इति । अथ इहां नाभि प्रमाणे जल अवगाहे ते लेप कह्यो। ते माटे ए उदक लेप एक मास में एक वार कल्पे पिण बे वार ३ वार न कल्पे। ते भणी वे वार रो थोड़ो दोष, अने ३ वार रो सबलो दोष छै। इण न्याय एक मास मे ३ उदक लेप नों सवलो दोष छै। अनें आठ मास में आठ वार कल्पे, नव वार रो थोड़ो दोष १० वार रो सबलो दोष छै। अनें जे कुहेतु लगावी कहे-जे एक मास में ३ माया ना स्थानक सेव्यां सबलो दोष तो एक तथा दोय सेव्यां थोड़ो दोष लागे । तिम नदी रा णि १ तथा २ लेप लगायां थोड़ो दोष कहे तो तिण रे लेखे रात्रि भोजन करे तो सबलो दोष कह्यो छै। अनें दिन रा भोजन करवा में थोड़ो दोष कहिणो। रात्रि भोजन रो सबलो दोष कह्यो ते मादे। तथा राजा पिण्ड भोगव्यां सवलो दोष कह्यो छै। तो तिण रे लेखे और आहार भोगव्यां थोड़ो दोष कहिणो। तथा ६ मास में एक गण थी बीजे संघाड़े गयां सबलो दोष कह्यो छै, तो तिण रे लेखे ६ माल पछे एक संघाड़ा थी बीजे संघाड़े गयां थोड़ो दोष कहिणो। तथा शय्यात्तर पिण्ड भोगव्यां सबलो दोष कह्यो छै। तो शय्यातर बिना और रो आहार भोगव्यां पिण तिण रे लेखे थोड़ो दोष कहिणो। जो माया ना स्थानक नों नदी ऊपर न्याय मिलाय ने दोष कहे तो यां सर्व में दोष कहिणो। इम पिण नहीं ए माया नों स्थानक तो एक पिण सेवण री आज्ञा नहीं, ते माटे तेहनों तो दोष कहोजे । अनें नदी उतारवा नों तो श्री वीतराग देव आज्ञा दीधी छ। ते माटे जिन भाज्ञा सहित नदी उतरे तिण में दोष नहीं। ते भणी माया ना स्थानक नों अने नदी नों एक सरीखो हेतु मिले नहीं । साहा हुवै तो विचारि जोइजो । . इति २ बोल सम्पूर्ण ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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