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________________ ३४० भ्रम विध्वंसनम् । सन्म. ५. वी० बीज बड़ प्रमुव ना सूत्म ६ ह. नवी हरी दर्वादिक. ७ अं• अंग माखो कीड़ी आदि ना ८ सूक्ष्म. अथ इहां ८ सूक्ष्म कह्या-धुंयर प्रमुख नौ सूक्ष्म स्नेह १ न्हाना फल २ कुंथुआ ३ उत्तिंग कीडी नगरा ४ नीलण फूलण ५ बीज खसखसादिकना ६ न्हाना अंकुर ७ कीडी प्रमुख ना अण्डा ८ सूक्ष्म कह्या। ते न्हाना माटे सूक्ष्म छै। पिण सूक्ष्म रो जीव गे भेद नहीं! तिम नेरइया अनें देवता ने अपन्नी कह्या। पिण असन्नी रो भेद नहीं। जे देवता ने असन्नी कह्यां माटे असन्नी रो भेद कहे--तो तिण रे लेखे ए आट बोलां ने सूक्ष्म कह्या छै यां में पिण सूक्ष्म रो भेद कहिणो। यां आठां में सूक्ष्म रो भेद नहीं तो देवता अने नेरइया में पिण असन्नो रो भेद न थी। डाहा हुए तो विचारि जोइजो । इति ३ बोल सम्पूर्ण। तथा जीवाभिगम मध्ये प्रथम प्रति पत्ति में तीन त्रस ३ सावर कह्या। ते पाठ लिखिये छ। से किं तं थावरा, थावरा तिविहा परणत्ता, तंजहापुढ़वी काइया, आउकाइया, वरणस्सइ काइया । ( जीवाभिगम १ प्र० । से ते कि किपा. था. स्थावर, था. स्थावर ति त्रिण प्रकारे. प. परूणा. तं० ते कहे छै पु० पृथिवी काय. प्रा० अपकाय. व वनस्पतिकाय. . अथ अठे तो. पृथिवी. अप. वनस्पति. नें इज स्थावर कह्या। पिण तेउ. वाउ. में स्थावर न कह्या। वली आगलि पाठ कह्यो, ते लिखिये छ ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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