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________________ संवराऽधिकारः । कह्या । छै I जीव छे । तथा भगवती श० १२ उ० १० आठ आत्मा में चारित आत्मा पिण संवर छै। तथा अनुयोग द्वार में च्यार चारित्र क्षयोपशम निष्पन्न तथा प्रश्न व्याकरण अ० ६ दया ने निज गुण कही । ते त्याग रूप दबा संघर छै । तथा उत्तराध्ययन अ० २८ चारित्र से गुण कर्म रोकवा रो कह्यो । कर्मा ने रोके ते संवर जीव छै । अजीव किम रोके, तथा भगवती श० ६ उ० ३१ चारित्रावरणी ते आवरण जीव रे आडो छै अजीब भाडो जघन्य मध्यम, उत्कृष्ट, चारित्र नी आराअजीव नी आराधना किम हुवे इत्यादिक इण न्याय संवर ने जीव कहीजे । डाहा हुवे 1 कह्यो, चारित्र आडो आवरण कह्यो । नहीं । तथा भगवती श० ८ उ० १० धना कही, ए आराधना जीव नी छै अनेक ठामे संवर ने अरूपी कह्यो । तो विचारि जोइजो | 1 इति ६ बोल सम्पूर्ण | इति संवऽधिकारः । SE ३३५ कही ते
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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