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________________ संघराऽधिकारः । तथा उत्तराध्ययन अ० २८ गा० ११ में पहवो पाठ कह्यो । से लिखिये है । नाणं च दंसणं चंव, वीरियं उवगोय, स धयार उजोओ वराण रस गंध फासा, ३५६ , ४२ चरितं च तो तहा । एयं जीएस लकवणं ॥ ११॥ पहा छाया त वा । पुग्गलाणं तु लक् ॥१२॥ (उत्तराध्ययन ०२८० ११-१२ ना० ज्ञान ने दं० दर्शन. चे० निश्चय च० चारित्र अनं तः तप तः तिमज वी० वीर्य सामर्थ्य. उ० ज्ञान ना उपयोग. ए० पूर्वोक्त ज्ञानादिक. जो० जीव ना लगा है ॥ ११॥ स० शब्द. अंधकार. उ० उद्योत रत्नादिक नों. प० प्रभा. कांति चन्द्रादिक नी. द्रा० शीतल छांहड़ी. त० ताप सूर्यादिक ना. ० वख २० रस मधुरादिक. गं० सुगन्ध दुर्गन्ध फा० पु० पुल नरें लक्षण है । अथ इहां ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप, वीर्य, उपयोग में जीब ना लक्षण का | अ शब्द. अन्धकार. उद्योत प्रभा. छाया. तावड़ो वर्षा गन्ध. रस. स्पर्श. ए पुद्गल ना लक्षण कह्या । इहां चारित्र में जीव ना लक्षण कथा | अनें चारित्र तेही व्रत सम्वर छै । ते भणी सम्बर में पिण जीव ना लक्षण कह्या । भनें जीव ना लक्षण तो जीव छै । अनें जे कोई चारित्र में जीव ना लक्षण कहे पिण जीवन कहे । तोतिण रे लेख वर्ण, रस, गन्ध, स्पर्श ने पण पुद्गल ना लक्षण कह्या, ते भणी पुद्गल ना लक्षण कहिणा. पिण पुद्गल न कहिणा । अनें पुद्गल ना लक्षण में पुल कहे तो जीव ना लक्षण नें जीव कहिणा । तथा ज्ञान, दर्शन, उपयोग ने जीव ना लक्षण कह्या ए जीव है तो चारित्र में पिण जीव मा लक्षण aar aartta foण जीव है । सेतो चारित्र व्रत संवर है । ने' जीव कहीजे । डाहा हुने तो विचारि जोजो । इणन्याय संवर इति २ बोलसंपूर्ण !
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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