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________________ २६४ भ्रम विध्वंसनम् । जहित्ता पुव्व संजोगं नाति संगेय वंधवे । जो न सज्जइ भोगेसु तं वयं वूम माहणं ॥ २६ ॥ ( उत्तराध्ययन अ०२५) ज० लांडो ने विचरे. पू० पूर्व सं० संयोग माता पितादिक ना. ना. ज्ञाति ते कुल. सं. संग ते सास सुसरादिक ना. व० वांवव ते भ्राता आदिक ने जो जो. न० नहीं. स. संसक्त होवे भोगां में विषे. त० तहन व म्हे. कहां छां माहण. अथ इहां कह्यो-पूर्व संयोग ज्ञाति संयोग तजी ने काम भोग ने विषे गृध्र पणो न करे। तेहनें म्हे कहां छां माहण । इहां पिण अनेक गाथा में माहण साधु ने इज कह्यो । पिण श्रावक नैन कह्यो । प्रथम तो सूयगडाङ्ग अ० १६ महामुनि ने माहण कह्यो। तथा सूयगडाङ्ग श्रुतखंड २ अ०१ साधु रा १४ नाम। में माहण कह्यो। तथा उत्तराध्ययन अ० २५ अनेक गाथा में माहण साधु ने इज कह्यो । तथा सूयगडाङ्ग श्रु० १ ० २ उ० २ गा० १ माहण नों अर्थ साधु कियो। तथा तथा तिणहिज उद्देश्ये गा०५ माहण मुनि ने कह्यो। तथा तेहज उद्देश्ये माहण यति ने कह्यो। इत्यादिक अनेक ठामे माहण साधु नें इज कह्यो। श्रमण ते तपस्या युक्त उत्तर गुण साहित ते भणी श्रमण कह्यो। माहण ते पोते हणवा थी निवृत्या अने पर ने कहे महणो महणो, मूल गुण युक्त ते भणी माहण कह्यो । पतले श्रमण माहण सांधु नें इज कह्यो। पिण श्रावक ने किण ही सूत्र में माहण कह्यो नथी। जिम स्वतीर्थी साधु ने श्रमण माहण कह्या, तिम अन्य तीर्थी में श्रमण शाक्पादिक. माहण ते ब्राह्मण ए अन्य तीर्थी ना पिण श्रमण माहण कह्या । डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १३ बोल सम्पूर्ण। तथा अनुयोग द्वार में एहवो कह्यो छै ते पाठ लिखिये छ।
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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