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________________ २४८ भ्रम विध्वंसनम् । . . . A ATS ... श्रमणोपासक री लेवा न कही। ए तो प्रत्यक्ष श्रावक ने टाल दियो, अनें श्रमण भाहण में वन्दना नमस्कार करणो कह्यो, ते माटे श्रावक ने नमस्कार करे ते कार्य माशा बाहिरे छ। तथा सूयगहाङ्ग श्रु० २ ० ७ उदक पेढाल पुत्र ने पिण गौतम कह्यो। जे तथा रूप श्रमण माहण कनें सीखे नेहने वन्दना नमस्कार करे. पिण श्रावक कने सीखे तेहने नमस्कार करणो न कह्यो। केतला एक कहे श्रमण ते साधु अनें माहण ते श्रावक छै ते पासे सीख्यां तेहनें वन्दना नमस्कार करणी । इम अयुक्ति लगावे तेहनों उत्तर-इहां तो एहवा पाठ कहा जे तथा रूप श्रमण माहण कनें एक वचन सीखे तो तेहनें “वन्दइ. नमसइ. सकारेइ सम्माणेइ. कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं" एतला पाठ कहा। एहवा शब्द साधु ने तथा भगवान् में ठामे २ कह्या । पिण श्रावक ने एतला शब्द किहांही कह्या नथी । “कल्लाणं. मंगलं. देवयं. चेइयं.' ए ४ नाम भगवान् तथा साधु रा तो अनेक ठामे कह्या, पिण श्रावक रा ४ नाम किहां ही नथी कह्या. ते माटे श्रमण माहण साधु नें इज इहां कहा। पिण श्रावक ने माहण नथी कह्यो। डाहा हुवे तो विचारि जोइजो। इति १० बोल सम्पूर्ण । तथा सूयगडांग अ० १६ माहणे साधु ने इज ह्या छै ते पाठ लिखिये छ। अहाह भगवं दंते दविए वोसटुकाए तिवच्चे माहणे तिवा सम णेतिबा भिक्खूति वा निगंथेति वा पड़िाह भंते ! कहणं भंते ! दविए बोसट्टकाए तिवच्चे माहणेति वासमणेति वा । भिक्खूति वा निग्गंथेति वा तं नो वृहि मुणी ति विरय सव्व पाप कम्मे पेज दोस कलह अभक्खाण पेसुण परि परिवाय अरइ रइ माया मोसा मिच्छादसणसल्ल विरए समिए सहिए सदाजए णो कुजे णो माणि माहणेतिवच्चे। (सूयगडांग ०१ अ.१६ )
SR No.032041
Book TitleBhram Vidhvansanam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayacharya
PublisherIsarchand Bikaner
Publication Year1924
Total Pages524
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size40 MB
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